अगर पेड भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते
बांध तने में उसके रस्सी
चाहे जहाँ कहीं ले जाते
जहाँ कहीं भी धूप सताती
उसके नीचे झट सुस्ताते
जहाँ कहीं वर्षा हो जाती
उसके नीचे हम छिप जाते
लगती भूख यदि अचानक
तोड मधुर फल उसके खाते
आती कीचड-बाढ क़हीं तो
झट उसके उपर चढ ज़ाते
अगर पेड भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते
∼ डॉ. दिविक रमेश
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दिविक रमेश हिन्दी के सुप्रतिष्ठित कवि,आलोचक और बाल-साहित्यकार हॆं।
ज़िन्दगीसंपादित करें
दिविक रमेश का जन्म 6फरवरी, 1946,(वास्तविक: 28 अगस्त 1946)को दिल्ली के गांव किराड़ी में हुआ था। इनका वास्तविक नाम रमेश चंद शर्मा है।
मुख्य कृतियाँ
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कविता संग्रहसंपादित करें
गेहूँ घर आया है
खुली आँखों में आकाश
रास्ते के बीच
छोटा-सा हस्तक्षेप
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