अगर संशोधन की शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होती है तो न्यायपालिका को संशोधन की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। क्या आप इस बात से सहमत हैं? 100 शब्दों में व्याख्या करें।
Answers
नहीं, मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ। न्यायपालिका का कर्तव्य ही होता है की वह देश के कानूनों की और जनता की हित और अधिकारों की रक्षा करे और न्यायपालिका से किसी भी संशोधन पर निर्णय लेने का अधिकार छीनना मतलब न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में बाधा डालना।
कोई भी नया कानून अगर संसद में पारित होता है या फिर जनता के प्रतिनिधि बनाते हैं तो उन कानूनों को न्यायपालिका ज़रूर विचार में लायेगी क्योंकि कहीं ऐसा ना हो उन कानूनों से लोगों के अधिकारों का हनन हो। अगर जनता के प्रतिनिधि कोई नया कानून लाते हैं तो क्या गांरटी है की वो ताकत के लालच में आकार जनता के हितों और अधिकारों का हनन नहीं करेंगे।
ऐसी समस्याओं को उत्त्पन्न ना होने देने के लिए ही आवश्यक है की न्यायपालिका के पास यह अधिकार हो की वह किसी भी नए कानून या संशोधन की वैधता जांचे।
Answer with Explanation:
मैं, इस बात से सहमत नहीं हूं। अगर संशोधन की शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होती है तो न्यायपालिका को संशोधन की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।
क्योंकि कहीं बार जनप्रतिनिधि जन्मत की परवाह न करते हुए निजी स्वार्थों के अनुसार संविधान में संशोधन कर देते हैं। इसी प्रकार भारत में 1970 से 1980 के बीच ऐसे कई संशोधन किए गए, जिनसे जनता तो किया विपक्षी दल भी सहमत नहीं थे और यदि उस समय न्यायपालिका अपनी सक्रियता नहीं दिखाती तो इससे भारतीय लोकतंत्र को हानि पहुंचती । अतः यह आवश्यक है कि न्यायपालिका को संसद द्वारा किए गए संवैधानिक संशोधनों की वैधता को पररखने का अधिकार होना चाहिए।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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