agneepath kavita ka kandriya bhav
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अग्नि पथ
हरिवंश राय बच्चन
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
#जीवन में जब कठिन समय आता है तो ही किसी की असली परीक्षा होती है। ऐसे समय में हो सकता है कि मदद के लिए कई हाथ आगे आएँ लेकिन कभी भी किसी की मदद नहीं लेनी चाहिए और अपने रास्ते पर बढ़ते रहना चाहिए।
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
#जब कठिन रास्ते पर चलना हो तो मनुष्य को एक प्रतिज्ञा करनी चाहिए। वह कभी नहीं थकेगा, कभी नहीं रुकेगा और कभी पीछे नहीं मुड़ेगा।
यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
#जब कोई किसी कठिन रास्ते से होते हुए अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होता है तो एक महान दृश्य देखने को मिलता है। ऐसे में मनुष्य अपने आँसू, पसीने और खून से लथपथ आगे बढ़ता रहता है और मंजिल को पा लेता है।
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