Agni par kavita for class 4
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i have a very interesting poem... which i got in a book
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“मैंने इतनी रोचक और पाठक को जोड़े रखने वाली आत्मकथा नहीं पढ़ी है। विटामिन ज़िन्दगी ख़ुद को पढ़वाना जानती है।” महादेव कुमार ठाकुर
अग्नि देश से आता हूँ मैं / हरिवंशराय बच्चन
हरिवंशराय बच्चन » एकांत-संगीत »
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
झुलस गया तन, झुलस गया मन,
झुलस गया कवि-कोमल जीवन,
किंतु अग्नि-वीणा पर अपने दग्ध कंठ से गाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
स्वर्ण शुद्ध कर लाया जग में,
उसे लुटाता आया मग में,
दीनों का मैं वेश किए, पर दीन नहीं हूँ, दाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
तुमने अपने कर फैलाए,
लेकिन देर बड़ी कर आए,
कंचन तो लुट चुका, पथिक, अब लूटो राख लुटाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
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