Agricultural waste to Wealth eassy in hindi
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भारत कृषि प्रधान देश है । यहाँ कि आधे से ज्यादा की अबादी कृषि कर अपना जीवन यापन करते हैं । यहाँ के कृषि की सबसे खास बात यह है कि यहाँ खेती हेतु प्राकृतिक संसाधनो का उपयोग होता है । पशुपालन कर लोग अपनी जीविका ही नही अपितु उनके अपशिष्ट पदार्थ (गोबर) का उपयोग करते हैं । गोबर को वार्मिंग कम्पोस्ट के विधि का उपयोग कर प्राकृतिक ऊर्वरक बनाते हैं और अपने खेतों में डालते हैं । इससे हमारे फसल तो उन्नत होते ही हैं साथ ही जमीन की उर्वरता बरकरार रहती है । इस विधि की सबसे खास बात तो यह है कि अनाज उच्च गन एवं पौस्टिक हुआ करते हैं । इससे हमारे शरीर मे हानि होने की सम्भावना न के बराबर होती है ।
लेकिन विगत कुछ वर्षोँ से हरित क्रांति आरम्भ हुआ , जिससे हमने अनाज का कटोरा भरा पाया । हम न केवल अपना पेट भरने में सक्षम रहे , अपितु हमने दुसरो को भी अनाज की सहायता की । असल में हरित क्रांति ने हमे खेती करने की नई विधि के साथ रासायनिक उर्वरक का उपयोग करने का तरीका भी बतलाया । हमने रासायनिक उर्वरकों को इस कदर अपनाया , जिसने हमारे कृषि भूमि के साथ - साथ हमे भी झंझोर कर रख दिया । हमारे जमीन बंजर होने लगे , भूमि की उर्वरता खोने लगी । रासायनिक उर्वरक हमारे शरीर के लिए विष का काम किया । रासायनिक अपशिष्ट केवल हमारे शरीर ही नही अपितु सम्पूर्ण वातावरण को प्रभावित किया ।
कई पशु - पक्षी विलुप्त होने लगे । जलीय जीवों पर भी बुरा असर पड़ा , डॉलफिन जैसे कई जीव विलुप्त हो रहे हैं।
खैर , हमारे कृषि विशेषज्ञ कई सारे शोध कर रहें है। उन्होंने वार्मिंग कम्पोस्ट को ही सर्वोत्तम विधि बताया । उन्होंने इसके संदर्भ में कहा कि कृषकों को अपने जमीन के भूमि की जांच करवा कर खेतु हेतु खाद का उपयोग करना चाहिए । जहाँ तक हो सके प्राकृतिक खाद का उपयोग करना चाहिए , तब ही हमारा कृषि और हमारा स्वास्थ्य दोनो पर्यावरण के अनुकूल रहेगा ।
लेकिन विगत कुछ वर्षोँ से हरित क्रांति आरम्भ हुआ , जिससे हमने अनाज का कटोरा भरा पाया । हम न केवल अपना पेट भरने में सक्षम रहे , अपितु हमने दुसरो को भी अनाज की सहायता की । असल में हरित क्रांति ने हमे खेती करने की नई विधि के साथ रासायनिक उर्वरक का उपयोग करने का तरीका भी बतलाया । हमने रासायनिक उर्वरकों को इस कदर अपनाया , जिसने हमारे कृषि भूमि के साथ - साथ हमे भी झंझोर कर रख दिया । हमारे जमीन बंजर होने लगे , भूमि की उर्वरता खोने लगी । रासायनिक उर्वरक हमारे शरीर के लिए विष का काम किया । रासायनिक अपशिष्ट केवल हमारे शरीर ही नही अपितु सम्पूर्ण वातावरण को प्रभावित किया ।
कई पशु - पक्षी विलुप्त होने लगे । जलीय जीवों पर भी बुरा असर पड़ा , डॉलफिन जैसे कई जीव विलुप्त हो रहे हैं।
खैर , हमारे कृषि विशेषज्ञ कई सारे शोध कर रहें है। उन्होंने वार्मिंग कम्पोस्ट को ही सर्वोत्तम विधि बताया । उन्होंने इसके संदर्भ में कहा कि कृषकों को अपने जमीन के भूमि की जांच करवा कर खेतु हेतु खाद का उपयोग करना चाहिए । जहाँ तक हो सके प्राकृतिक खाद का उपयोग करना चाहिए , तब ही हमारा कृषि और हमारा स्वास्थ्य दोनो पर्यावरण के अनुकूल रहेगा ।
rishilaugh:
Great thanks
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भारत एक ऐसा देश है जिसे कृषको का देश तथा यहां के कृषको को अन्नदाता से संबोधित किया जाता हैं। कृषि के क्षेत्र में भारत की प्रधानता प्राचीन काल से चली आ रही हैं। यहां की संस्कृति में जितनी विविधता हैं उतनी ही विविधता यहां की जलवायु में है। जलवायु के इस विविधता का भारतीय कृषियों ने भरपूर लाभ उठाने की कोशिश की है।
यहां के कृषकों की सबसे अच्छी खासियत यह है कि ये कृषि एवं पशुपालन द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों का भी उपयोग करने में माहिर होतें हैं। जहां एक तरफ मवेशियों के गोबर से गोबर गैस उत्पन्न करतें हैं वहीं दूसरी तरफ फसलों के अवशेषों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता हैं।
आधुनिक विज्ञान के युग में खेतों में पैदावार बढ़ाने के लिए वैज्ञानिको द्वारा बनाए गए विभिन्न रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जा रहा है। ये रासायनिक उर्वरक खेतो की उपजाऊ क्षमता को नष्ट कर रहे हैं साथ ही इनका प्रतिकूल प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर भी पर रहा है।
ऐसी स्थिति के निवारण हेतु कृत्रिम उर्वरकों के स्थान पर प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग करना अत्यंत आवश्यक हैं। कृषि द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों एवं मवेशियों के गोबर को एकत्रित करके उनका वर्मिंग कम्पोस्ट विधि द्वारा प्राकृतिक उर्वरक बनाया जाता हैं। इन उर्वरकों का उपयोग खेतों मे किया जाता हैं। इससे खेतों की उर्वरक क्षमता तो बढती ही है साथ ही उन्हें बंजर होने से भी बचाया जाता हैं।
अतः इस कृषि अपशिष्टों द्वारा निर्मित इन उर्वरकों के उपयोग पर बल देना चाहिए और अन्न तथा स्वास्थ्य रुपी धन दोनों को संरक्षित करना चाहिए।
यहां के कृषकों की सबसे अच्छी खासियत यह है कि ये कृषि एवं पशुपालन द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों का भी उपयोग करने में माहिर होतें हैं। जहां एक तरफ मवेशियों के गोबर से गोबर गैस उत्पन्न करतें हैं वहीं दूसरी तरफ फसलों के अवशेषों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता हैं।
आधुनिक विज्ञान के युग में खेतों में पैदावार बढ़ाने के लिए वैज्ञानिको द्वारा बनाए गए विभिन्न रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जा रहा है। ये रासायनिक उर्वरक खेतो की उपजाऊ क्षमता को नष्ट कर रहे हैं साथ ही इनका प्रतिकूल प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर भी पर रहा है।
ऐसी स्थिति के निवारण हेतु कृत्रिम उर्वरकों के स्थान पर प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग करना अत्यंत आवश्यक हैं। कृषि द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों एवं मवेशियों के गोबर को एकत्रित करके उनका वर्मिंग कम्पोस्ट विधि द्वारा प्राकृतिक उर्वरक बनाया जाता हैं। इन उर्वरकों का उपयोग खेतों मे किया जाता हैं। इससे खेतों की उर्वरक क्षमता तो बढती ही है साथ ही उन्हें बंजर होने से भी बचाया जाता हैं।
अतः इस कृषि अपशिष्टों द्वारा निर्मित इन उर्वरकों के उपयोग पर बल देना चाहिए और अन्न तथा स्वास्थ्य रुपी धन दोनों को संरक्षित करना चाहिए।
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