अहे निहुर परिवर्तन
तुम्हारा हो ताण्डव नर्तन,
विश्व का करुण विवर्तन!
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान, पतन!
| अहे वासुकि सहस्र फन!
लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे चिह्न निरन्तर
छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षःस्थल पर
शत शत फेनोच्छवसित, स्फीत फुत्कार भईकर
घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अम्बर।
मृत्यु तुम्हारा गरल दन्त, कंचुक कल्पात,
अखिल विश्व ही विवर।
वक्र कुण्डल
दिमंडल!
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