ऐसा कोई दिन आ सकता है, जबदक मनुष्य के नाखूनोोंका बढ़ना बोंि हो जाएगा। प्रादिशास्त्रियोोंका ऐसा अनुमान हैदक
मनुष्य का यह अनावश्यक अोंग उसी प्रकार झड़ जाएगा, दजस प्रकार उसकी पूूँछ झड़ गई है। उस दिन मनुष्य की पशुता भी
लुप्त हो जाएगी। शायि उस दिन वह मारिािोोंका प्रयोग भी बोंि कर िेगा। तब तक इस बात सेछोटेबच्ोोंको पररदित
करा िेना वाोंछनीय जान पड़ता हैदक नाखून का बढ़ना मनुष्य के भीतर की पशुता की दनशानी हैऔर उसेनहीोंबढ़नेिेना
मनुष्य की अपनी इच्छा है, अपना आिशशहै।
बृहत्तर जीवन मेंअि-शिोोंको बढ़नेिेना मनुष्य की पशुता की दनशानी हैऔर उनकी बाढ़ को रोकना मनुष्यत्व का
तकाजा। मनुष्य मेंजो घृिा है, जो अनायास दबना दसखाए आ जाती है, वह पशुत्व का द्योतक हैऔर अपनेको सोंयत रखना,
िू सरेके मनोभावोोंका आिर करना मनुष्य का स्वधमशहै। बच्ेयह जानेतो अच्छा हो दक अभ्यास और तप सेप्राप्त वस्तुएूँ
मनुष्य की मदहमा को सूदित करती हैं। मनुष्य की िररतार्शता प्रेम मेंहै, मैत्री मेंहै, त्याग मेंहै, अपनेको सबके मोंगल केदलए
दन:शेष भाव सेिेिेनेमेंहै। नाखूनोोंका बढ़ना मनुष्य की उस अोंध सहजात वृदत्त का पररिाम है, जो उसके जीवन में
सफलता लेआना िाहती है, उसको काट िेना उस स्व-दनधाशररत, आत्म-बोंधन का फल है, जो उसेिररतार्शता की ओर ले
जाती हैं।
1. दिए गए गद्याोंश का शीषशक दलस्त्रखए।
2. दवलोम दलस्त्रखए-घृिा, लुप्त।
3. मनुष्य के नाखून उसकी पशुता के प्रमाि क्ोोंहैं? इनका झड़ जाना मनुष्यता केदलए दकस तरह लाभिायी हैं?
4. लेखक बच्ोोंको क्ा पररदित करवा िेना िाहता है? यह बृहत्तर जीवन के दलए दकस तरह उपयोगी है?
5. मनुष्य की िररतार्शता दकसमेंहै? मनुष्य इसेिररतार्शकरनेकी दिशा मेंदकस तरह किम बढ़ा सकत
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BACHPAN
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