aj ki siksha bachpan ko nigal rahi hai
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जी हाँ ! आज की शिक्षा बचपन को निगल रही है । आज कल के बच्चे पढाई के बोझ तले ऐसे दब गए है की उन्हें साँस लेने तक की फुरसत नहीं होती है । आये दिन क्लास टेस्ट, हर २ महीने में परीक्षा और उसके ऊपर तरह तरह की और परीक्षाएं जैसे ओलिंपियाड, NTSE और ज्याने क्या क्या। फिर ये कम हो तोह पाठशाला से प्रोजेक्ट भी आ जाते है ( जिसमे बच्चें और माता-पिता भी पिस जाते है)खेल कूद की बात करें तो उसमे भी बच्चों को खुल के खेलने का मौका नहीं मिलता। सभी माता पिता को अपने बच्चे में सचिन तेंदुलकर, साइना नेहवाल, मेस्सी जैसे बड़े बड़े खिलाडी ही दिखते है, इसलिए स्कूल के बाद इन खेलों की कोचिंग के लिए बच्चे और घरवाले भागते दिखाई देते है ।
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आज की शिक्षा बचपन को निगल रही है। वर्तमान सन्दर्भ में यह पूर्णतः सत्य है। शिक्षा आजकल किताबों को रटकर पुरे-पुरे अंक लाने का पर्याय हो गयी है। इस दौड़ ने बच्चों के जीवन को किताबों के बोझ तले दबा कर उनके बचपन को दफ़न कर दिया है। रही सही कसार तथाकथित उच्च-स्तरीय कोचिंग सेंटरों ने कर दी है। बच्चे विद्यालय से आते ही कोचिंग के लिए चले जाते हैं और फिर देर शाम को घर वापिस आते हैं. ना तो उनके पास खेलने का समय रहता है और ना ही किसी मनोरंजन या शौक के लिए। अभिभावक और शिक्षक गण सभी उनसे बहुत उम्मीदें रखते हैं और उन उम्मीदों को पूरा करने की धुन में बच्चें अपने आप को और अपने बचपन को, दोनों भूल जाते हैं। निम्न कहावत आज के विद्यार्थियों पर पूरी तरह लागु होती है:-
हाय रे विद्यार्थी जीवन, तेरी यही कहानीकन्धों पर किताबों का बोझ और कभी ना ख़त्म होती बचपन की क़ुरबानी ।।
हाय रे विद्यार्थी जीवन, तेरी यही कहानीकन्धों पर किताबों का बोझ और कभी ना ख़त्म होती बचपन की क़ुरबानी ।।
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