अकेला repper का वर्णन करें
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विलियम वर्ड्सवर्थ एक कवि थे जिन्होंने प्रकृति और सरल देश के जीवन की पूजा की थी। 'सॉलिटेरी रीपर' में वह स्कॉटलैंड हाइलैंड्स में अकेले रेपर के दयनीय गीत से उनके द्वारा किए गए छाप को व्यक्त करने की कोशिश करता है। यह उनके गीतों में से सबसे सुंदर है। कविता पढ़ने के बाद कविता और चित्रों का संगीत हमारे दिल में लंबे समय तक चित्रित होता है।
कवि एक खेत से गुज़र रहा था जहां उसने एक लड़की को उदासीन तनाव गाते हुए देखा। वह वहां से स्थानांतरित हो सकता था। इस दृष्टि ने कवि को आकर्षित किया। गीत जादू की तरह था। यह कोयल पक्षी के रूप में सुंदर था। कवि के मुताबिक, गीत लड़ाइयों के बारे में था जो बहुत पहले हुआ था। यह दुख, हानि और दर्द से भरा था। यह गीत कभी खत्म नहीं होता था। हालांकि कवि उस दिन पहाड़ी पर चढ़ गए, लेकिन गीत उनके दिमाग पर एक मजबूत प्रभाव के पीछे छोड़ दिया। वह कहता है कि उस दिन के बाद उसने कभी ऐसा गीत कभी नहीं सुना था।
कवि एक खेत से गुज़र रहा था जहां उसने एक लड़की को उदासीन तनाव गाते हुए देखा। वह वहां से स्थानांतरित हो सकता था। इस दृष्टि ने कवि को आकर्षित किया। गीत जादू की तरह था। यह कोयल पक्षी के रूप में सुंदर था। कवि के मुताबिक, गीत लड़ाइयों के बारे में था जो बहुत पहले हुआ था। यह दुख, हानि और दर्द से भरा था। यह गीत कभी खत्म नहीं होता था। हालांकि कवि उस दिन पहाड़ी पर चढ़ गए, लेकिन गीत उनके दिमाग पर एक मजबूत प्रभाव के पीछे छोड़ दिया। वह कहता है कि उस दिन के बाद उसने कभी ऐसा गीत कभी नहीं सुना था।
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जॉन वर्ड्सवर्थ और ऐन कूक्सन के ५ बच्चो में से दूसरे, विलियम वर्द्स्वर्थ का जन्म ७ अप्रैल १७७० को कौकरमाउथ, कंबरलैंड, इंग्लैंड के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता जेम्स लौथर, अर्ल ओफ लोन्स्डेल के कानूनी प्रतिनिधि थे और अपने सम्पर्क से छोटे शेहेर के बङे मकान में रह्ते थे। उनकी मृत्यु १७८३ में हुइ थी। वर्ड्सवर्थ के पिता अक्सर व्यापार के सम्बन्ध में घर से बाहर रेह्ते थे, हालांकि उसे पढने के लिये प्रोत्साहित करते थे और विशेश रूप से मिलटन, शेक्सपियर और स्पेंसर द्वारा रचित कविता प्रतिबध, इसके अतिरिक्त उसे अपने पिता के पुस्तकालय का उपयोग करने के लिए अनुमति दी गई थी। उनके चार भाई-बहन थे। डोरोथी वर्ड्सवर्थ, जिस्से वें सबसे ज़्यादा करीब थे, वह एक कवीत्री थी। रिचर्ड, सबसे ज्येष्ठ, वकील थे, जॉन अलॆ आफॅ ऎबरगेवनी जहाज के कप्तान थे और क्रिस्टोफर, कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज का मास्टर था। उनकी माँ के मृत्यु के बाद, १७७८ में, उनके पिता ने उन्हे हॉक्शीड ग्रामर स्कूल्लं, काशायर (अब कम्ब्रीया मे) और डोरोथी को यॉर्कशायर में रिश्तेदारों के साथ रहने भेज दिया था। वह और वर्ड्सवर्थ ९ सालों तक एक दूसरे से नहीं मिल पाए। कॉकरमाउथ में कम गुणवत्ता के एक छोटे से विद्यालय में पढने के बाद, हॉकशीड शिक्षा साथ वर्ड्सवर्थ का पहला गंभीर अनुभव था। कॉकरमाउथ विद्यालय के पश्चात, उन्हे पैनरिथ में उच्च श्रेणी के परिवारों के बच्चों के लिए बनाए गए विद्यालय भेजा गया था। वर्ड्सवर्थ नें एक लेखक के रूप में अपनी शुरुआत १७८७ में किया जब यूरोपीय पत्रिका में उन्की कविता प्रकाशित हुइ। उसी वर्ष वह सेंट जॉन्स कॉलेज, कैम्ब्रिज जाने लगे और १७९१ में उन्हें बी॰ए॰ की डिग्री प्राप्त हुइ।
नन्हीं मासूम कली
विलियम वर्ड्सवर्थ
अनुवाद - किशोर दिवसे
सूरज की किरणों और भीगी फुहारों में
खिलती रही एक कली बीते तीन बरसों में
आतुर प्रकृति ने कहा - प्रेम के आवेग में
नहीं खिला कोई फूल मेरी सूनी गोद में
निसर्ग के नियम और सदा संवेगों के संग
उस मासूम में खिलेंगे प्रेम के अगणित रंग
चंचल चितवन चहकेगी मेरे संग-संग
पर्वतों, पहाड़ियों और पसरे मैदानों पर
निकुंज और वनों की सर्पिल पगडंडियों पर
धरती और स्वर्ग पर... धरती और स्वर्ग पर
महसूस करेगी वह एक आत्मस्फूर्ति
और अंतर्चेतना - प्रज्ज्वलन पर शमन
कुलाँचें भरेगी वह मृग शावक बनकर
आनंदित होती है जो हरीतिमा देखकर
या, पगडंडियों से रिसते झरनों से
और बन जाएगी वृक्ष सुगंधित सा
मन होगा उसका शांत और गंभीर
मौन, स्पंदित सजीवों की तरह
कपसीले गुच्छों जैसे सारे मेघ समूह
लेकर आएँगे उसके लिए धुनकनी
आँधी, बवंडर और तूफान में भी
देखना वह नहीं होगी विफल
वह लावण्य जो उसे बनाकर देगा
यौवना... प्रकृति की ईश्वरीय अनुकंपा से
मध्य रात्रि के सितारे होंगे उसके प्रिय
कान लगाकर सुनेगी वह अनेकों बार
जहाँ नदियाँ करती होंगी उन्मुक्त नर्तन
प्रतिबिंब होंगे... अनचीन्हे, अबूझ
संगीत के सुर जो सजेंगे लहरों से!
तब एकाकार होंगी उसके कांतिवान चेहरे पर
उमंग और उल्लास की जीवंत संवेदनाएँ।
नन्हीं मासूम कली
विलियम वर्ड्सवर्थ
अनुवाद - किशोर दिवसे
सूरज की किरणों और भीगी फुहारों में
खिलती रही एक कली बीते तीन बरसों में
आतुर प्रकृति ने कहा - प्रेम के आवेग में
नहीं खिला कोई फूल मेरी सूनी गोद में
निसर्ग के नियम और सदा संवेगों के संग
उस मासूम में खिलेंगे प्रेम के अगणित रंग
चंचल चितवन चहकेगी मेरे संग-संग
पर्वतों, पहाड़ियों और पसरे मैदानों पर
निकुंज और वनों की सर्पिल पगडंडियों पर
धरती और स्वर्ग पर... धरती और स्वर्ग पर
महसूस करेगी वह एक आत्मस्फूर्ति
और अंतर्चेतना - प्रज्ज्वलन पर शमन
कुलाँचें भरेगी वह मृग शावक बनकर
आनंदित होती है जो हरीतिमा देखकर
या, पगडंडियों से रिसते झरनों से
और बन जाएगी वृक्ष सुगंधित सा
मन होगा उसका शांत और गंभीर
मौन, स्पंदित सजीवों की तरह
कपसीले गुच्छों जैसे सारे मेघ समूह
लेकर आएँगे उसके लिए धुनकनी
आँधी, बवंडर और तूफान में भी
देखना वह नहीं होगी विफल
वह लावण्य जो उसे बनाकर देगा
यौवना... प्रकृति की ईश्वरीय अनुकंपा से
मध्य रात्रि के सितारे होंगे उसके प्रिय
कान लगाकर सुनेगी वह अनेकों बार
जहाँ नदियाँ करती होंगी उन्मुक्त नर्तन
प्रतिबिंब होंगे... अनचीन्हे, अबूझ
संगीत के सुर जो सजेंगे लहरों से!
तब एकाकार होंगी उसके कांतिवान चेहरे पर
उमंग और उल्लास की जीवंत संवेदनाएँ।
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