अक्रोधेन जयेत् क्रोधम्, असाधु साधुना जयेत्।
जयेत् कदर्य दानेन, जयेत् सत्येन
चानृतम्।।
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क्रोध पर विजय क्रोध न कर के ही प्राप्त हो सकती है, तथा
दुष्टता पर विजय सौम्य स्वभाव तथा सद्व्यवहार द्वारा ही होती है।
कंजूसी की प्रवृत्ति पर विजय दान देने से ही सम्भव होती है, और
झूठ बोलने की प्रवृत्ति पर सत्यवादिता से ही विजय प्राप्त होती है।
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