अकबर की भूमि बंदोबस्त प्रणाली का मूल्यांकन करते हुए मुगलकालीन भू-राजस्
प्रणाली का वर्णन कीजिए?
अंक-8 शब्दसीमा 250-300
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Akbar ki Bhumi bandobast pranali ka mulyankan karte hue mugalkalin BHU rajasv pranali ka varnan kijiye by h
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अकबर की भू-राजस्व व्यवस्था Akbar's land revenue system
Explanation:
1 भू-राजस्व प्रशासन में प्रारम्भिक प्रयोग
- कृषि योग्य भूमि तीन वर्गों में विभाजित थी खालसा, जागीर और मदद-ए-माश जागीरों के भू-राजस्व प्रशासन का दायित्व उनसे सम्बद्ध मनसबदारों का था तथा मदद-ए-माश के अन्तर्गत भूमि की आय पर धार्मिक व्यक्तियों का अधिकार होता था। राज्य के लिए खालसा भूमि ही राजस्व का साधन होती थी।
- अकबर ने शासन की बागडोर वास्तविक रूप से अपने हाथों में सम्भालते ही राज्य की आय के अराजकता, मुख्य स्रोत भू-राजस्व की महत्ता को समझते हुए भू-राजस्व प्रशासन में व्याप्त दस्तावेज़ों में गड़बड़ी, किसानों के अनावश्यक शोषण तथा राज्य की आय में अनश्चितता की स्थिति को सुधारने तथा अपने साम्राज्य में भू-राजस्व प्रशासन में एकरूपता लाने के प्रयास प्रारम्भ कर दिए। उसके प्रारम्भिक प्रयोगों में शाह मन्सूर, मुज़फ्फ़र खाँ तरबाती तथा राजा टोडरमल का विशेष योगदान था।
- मुज़फ्फ़र खाँ तरवाती तथा राजा टोडरमल ने स्थानीय कानूनगो के दस्तावेज़ों का गहन अध्ययन किया। राजा टोडरमल ने समस्त गुजरात की कृषि योग्य भूमि का सर्वेक्षण किया और उसके आधार पर वहां भू-राजस्व का निर्धारण किया।
2 राजा टोडरमल का दहसाला बन्दोबस्त
- अकबर यह समझता था शेरशाह के शासनकाल में राजस्व अधिकारी रह चुके राजा टोडरमल का भूमि का दहसाला बन्दोबस्त सन् 1573 के उसके गुजरात के तथा सन् 1575-76 के उसके गुजरात, बिहार व बंगाल छोड़कर शेष साम्राज्य के भू-राजस्व प्रशासन के सर्वेक्षण पर आधारित था।
- टोडरमल ने साम्राज्य को लगभग 1 करोड़ टकों की वार्षिक भू राजस्व आय वाली 182 इकाइयों में विभाजित किया और उनमें से प्रत्येक को करोड़ी नामक अधिकारी के सुपुर्द कर दिया। बाद में इस व्यवस्था को बदल कर भू राजस्व प्रशासन हेतु साम्राज्य को 12 सूबों में विभाजित कर दस वर्षीय व्यवस्था दहसाला बन्दोबस्त को लागू किया गया।
- भू-राजस्व निर्धारण हेतु भूमि की पैमाइश की गई तथा उसे उत्पादकता की दृष्टि से पोलज, परौती, चाचर तथा बन्जर में वर्गीकृत किया गया। लगान के रूप में किसान को अपनी दस वर्ष की औसत उपज का तीसरा भाग देना निश्चित किया गया।
- विभिन्न क्षेत्रों में कृषि-उत्पादों की मूल्य-तालिका (दस्तूरुल अमल) के आधार पर किसान की कुल उपज का मूल्यांकन किया गया और फिर लगान को नकदी में लिए जाने का प्रबन्ध किया गया। इस व्यवस्था पर शेरशाह के भू-राजस्व प्रशासन की स्पष्ट छाप थी।
- दहसाला बन्दोबस्त न तो दस वर्ष के लिए था न ही यह स्थायी था, लगान की दरों में समय-समय पर संशोधन करने का अधिकार राज्य के पास सुरक्षित था। इस व्यवस्था में किसानों के हितों की रक्षा करने तथा राजस्व अधिकारियों द्वारा उनके शोषण पर नियन्त्रण करने के अनेक प्रबन्ध किए गए थे किन्तु यह व्यवस्था दोषमुक्त नहीं थी।
- इसमें किसानों पर करों का बोझ अत्यधिक था। लॉर्ड कॉर्नवालिस के शासनकाल में सन् 1793 के स्थायी बन्दोबस्त में लगान निर्धारण में दहसाला बन्दोबस्त के दस्तावेज़ों को ही आधार बनाया गया था किन्तु ब्रिटिश •शासन की भू-राजस्व व्यवस्था की तुलना में मुगलकालीन भू-राजस्व व्यवस्था अधिक उदार तथा किसानों के लिए हितकारी थी।
3 मुगल भू-राजस्व व्यवस्था के गुण-दोष
- महान मुगल शासकों की भू-राजस्व व्यवस्था मध्यकालीन परिस्थितियों को देखते हुए उदार एवं व्यवस्थित कही जा सकती है।
- राजपूत, मराठा, सिक्ख तथा अन्य परवर्ती भारतीय शासकों के अतिरिक्त ब्रिटिश भारतीय शासकों ने भी मुगलों की भू-राजस्व प्रणाली को अपने भूमि-प्रशासन का आधार बनाया था।
- मुगल काल लगान कुल उत्पादन पर नहीं अपितु लाभांश (बीज, खाद आ का खर्चा निकाल कर) के आधार पर वसूला जाता था जब कि अंग्रेज़ों ने भारत में लगान निर्धारण में कुल उत्पादन को आधार बनाया था इसीलिए मुगल काल की तुलना में ब्रिटिश काल में किसानों की दशा कहीं अधिक खराब थी।
- मुगल भू-प्रशासन इस धारणा पर आधारित था कि साम्राज्य की समृद्धि किसान के सुखी होने पर निर्भर करती है। इसलिए मुगल शासन में यथा सम्भव किसान के हितों की रक्षा की गई, उसको प्रोत्साहित किया गया और आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता भी की गई।
- भू-राजस्व निर्धारण हेतु भूमि की पैमाइश की गई तथा उसे उत्पादकता की दृष्टि से पोलज, परोती, चाचर तथा
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