अखबारों और पत्रिकाओं पर आपातकाल का क्या प्रभाव पडा
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1824 की बात है. बंगाल सरकार (जिसकी कमान तब ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में थी) ने एक अध्यादेश पारित करते हुए प्रेस की आजादी पर कड़ी बंदिशें लगा दीं. नये नियमों के तहत सरकार कोई भी स्पष्टीकरण दिए बगैर किसी भी अखबार का लाइसेंस खत्म कर सकती थी. इस अध्यादेश से कोलकाता के बुद्धिजीवी समाज में आक्रोश फैल गया जो बांग्ला और हिंदी में कई अखबारों और पत्रिकाओं का प्रकाशन कर रहा था. अध्यादेश रद्द करवाने के लिए सरकार को एक ज्ञापन भेजा गया. इसका मसौदा प्रख्यात बुद्धिजीवी राम मोहन राय ने तैयार किया था. राम मोहन राय ने इस पर टैगोर परिवार के सदस्यों सहित कई लोगों के हस्ताक्षर भी करवाए थे.
मैंने कई साल पहले राम मोहन राय का वह ज्ञापन पढ़ा था जिसमें इस घटना का जिक्र था. आज भारत में जिस तरह से पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए मुझे इसे एक बार फिर देखने की उत्सुकता हुई. एक ऐसे समय में जब स्वतंत्र भारत की सरकार प्रेस की आजादी की उसी तरह दुश्मन दिखने लगी है जैसी कि औपनिवेशिक सरकार हुआ करती थी, राम मोहन राय के शब्द सचेत करते हैं.