Akhiyan Hari e Darshan ki bhukhi Kaise Rahe rup Ras Ranchi e a Batiya suni rukhi
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अंखियां हरि-दरसन की भूखी।
कैसे रहैं रूप-रस रांची ये बतियां सुनि रूखी॥
`अंखियां हरि-दरसन की भूखी यह पंक्तियाँ कवि सूरदास जी द्वारा लिखी गई है|
इन पंक्तियों में कवि गोपियों की भावना को कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को दर्शाना चाहते है, वह कहना चाहते है कि हमारी आँखें हरी का दर्शन करना चाहती है| यह उनका दर्शन न पा कर उदास रहती है| वह उनका दर्शन करना चाहते है| उद्धव के द्वारा संदेश लेकर आने के लिए वह और भी ज्यादा दुखी है|
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