अलंकार
अर्थ के आधार पर वाक्य भेद
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अलंकार का शाब्दिक अर्थ है "आभूषण "
मनुष्य सौंदर्य प्रेमी है वह अपनी प्रत्येक वस्तु को सुसज्जित और अलंकृत देखना चाहता है |वह अपने कथन को भी शब्दों के सुंदर प्रयोग और विश्व उसकी विशिष्ट अर्थवत्ता से प्रभावी व सुंदर बनाना चाहता है |
अर्थ के आधार पर वाक्य भेद
अर्थालंकार = जहां कविता में सौंदर्य और विशिष्टता अर्थ के कारण हो वहां अर्थालंकार होता है |
1- उपमा = यहां किसी वस्तु की तुलना सामान्य गुणधर्म के आधार पर वाचक शब्दों से अभिव्यक्त होकर किसी अन्य वस्तु से की जाती है उपमा अलंकार होता है |
जैसे - पीपर पात सरिस मन डोला |
2- रूपक = जहां उपमेय और उपमान विभिनता हो और वह एक रूप दिखाई दे |
जैसे - चरण कमल बंदों हरि राइ |
3- उत्प्रेक्षा = जहां प्रस्तुत उपमेय के अप्रस्तुत उपमान की संभावना व्यक्त की जाए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है |
जैसे - वृक्ष ताड़ का बढ़ता जाता मानो नभ को छूना चाहता |
4- भ्रांतिमान = जहां समानता के कारण उपमेय मे उपमान की निश्चययात्मक प्रतीति हो और वह क्रियात्मक परिस्थिति में परिवर्तित हो जाए |
5- संदेह = यहां उसी वस्तु के समान दूसरी वस्तु की संदेह हो जाए लेकिन वह निश्चित आत्मक ज्ञान में ना बदलें वहां संदेह अलंकार होता है |
6= अतिशयोक्ति = जहां किसी वस्तु का वर्णन बढ़ा - चढ़ाकर किया जाता है वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है |
जैसे - हनुमान की पूंछ में लगन न पाई अग्नि ,लंका सिगरी जल गई ,गए निशाचर भागी |
7- विभावना अलंकार = जहां कारण के अभाव में कार्य की उत्पत्ति का वर्णन किया जाता है विभावना अलंकार होता है |
जैसे - चुभते ही तेरा अरुण बाण कहते कण-कण से फूट फूट मधु के निर्झर के सजल गान |
8- मानवीयकरण= जहां का मूर्त या अमूर्त वस्तुओं का वर्णन सजीव प्राणियों या मनुष्यों की क्रियाशीलता की भांति वर्णित किया जाए वहां मानवीकरण अलंकार होता है |अर्थात निर्जीव में सजीव के गुणों का आरोपण होता है |
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