अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई पर अनुछेद
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हाल ही में आॅक्सफेम और डेवलपमेंट फाइनेंस इंटरनेशनल द्वारा जारी असमानता घटाने के प्रतिबद्धता सूचकांक में 157 देशों की सूची में भारत को 147वें पायदान पर रखा गया है। इसमें रैंकिंग के अलग अलग पैमाने हंै। इससे स्पष्ट होता है देश में अमीर और गरीब के बीच असमानता गहरी है। विकास दर के साथ ही अरबपतियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। गरीबी हटाओ का नारा तो आजादी के समय से ही लोग सुनते रहे है लेकिन गरीबी हटाने के नाम की माला जपने वाले गरीबी के नाम पर राजनीति ही करते रहे है। यह दुर्भाग्य ही है आज हम न्यू इंडिया और स्मार्ट सिटी के सपने तो देख रहे है लेकिन आधी आबादी को गरीबी के दाग से नहीं बचा पा रहे है। विकास की वर्तमान प्रक्रिया के कारण एक तबके के पास हर तरह की विलासिता के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध है और दूसरी तरफ गरीब लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पा रही है। भौतिकवादी प्रवृति के कारण अमीरों और गरीबों के बीच उपलब्ध संसाधनों का जो अंतर लगातार बढ़ रहा है उसमे एकरूपता लाने के लिए प्रयास नाकाफी है।
आज दुनिया के कई विचारक इस बात से सहमत है कि बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का जो मॉडल अपनाया गया है वह कामयाब नहीं हो पाया है। वैश्वीकरण की आंधी और बाजार के मोह में जकड़े करोड़ों कंगाल लोग पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी का दंश झेल रहे है और पैसे के बल पर मुट्ठी भर लोगों ने भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं पर कब्जा कर लिया है। हमारे देश में संसाधनों और सम्पत्ति का न्यायपूर्ण वितरण अभी तक सुनिश्चित नहीं किया जा सका है इसके कारण समाज में अन्याय की मात्रा बढ़ती है और नागरिकों में शासन के प्रति असंतोष भी बढ़ता है। हमारे यहां वैश्विक अर्थव्यवस्था के जिस उदारीकरण और निजीकरण के समर्थक मॉडल को अपनाया गया है वह अमीर और गरीब की खाई को पाटने की बजाय और अधिक चौड़ा कर रहा है। पिछले सालों के रिकॉर्ड को देखने पर नजर आता है कि देश में दस फीसदी पूंजीपति लोगों की आय में कई गुना वृद्धि हुई है जबकि दूसरी ओर दस फीसदी आम लोगों की आय में कई गुना कमी हुई है। यानि घरेलू उत्पाद में खरबपतियों की संख्या में इजाफा हो रहा है वहीं कृषि में जीडीपी का स्तर घट रहा है। एक तरह से विकास दर से सम्बन्ध उद्योगपतियों और कारोबारियों तक ही सीमित हो रहा है।
आवश्यकता समावेशी विकास की अवधारणा पर ध्यान केंद्रित किये जाने की है मगर धरातल पर समावेश नहीं है। विकास का पैमाना आर्थिक और सामाजिक समानता कायम करने वाला और गरीबों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने वाला होना चाहिए। कुछ अरबपतियों की आय कुबेर के खजाने की तरह बढ़ रही है दूसरी तरफ बड़ी आबादी दो जून की रोटी के लिए लालायित है। अर्थव्यवस्था में यह बदलाव देश की गरीबी को ओर अधिक बढ़ाने वाला है।