an essay on Rakesh Sharma in Hindi
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ANS.भूमिका- मानव के अदम्य साहस ने प्रकृति की अनबूझ पहेलियों को सुलझाने के लिए निरंतर प्रयास किए, संघर्ष से जूझते रहे तथा अनेक बलिदान भी दिए लेकिन अपने लक्ष्य में सफलता अवश्य ही प्राप्त की। विज्ञान के द्वारा समूद्र के गर्भ में छिपे रहस्य, अन्तरिक्ष का ज्ञान, नीले आकाश के चमकते चांद, सूरज सितारे तथा अन्य छिपे ग्रह-उपग्रह आज उसकी ज्ञान की परिधि से बाहर नहीं हैं। चाँद को देवता मानकर अब पूर्णमासी के व्रत कब तक रखे जाएंगे जबकि मनुष्य ने उसके धरातल पर कदम रख लिए हैं तथा उसके रहस्यों को समझने की कोशिश में जुटा हुआ है। भारतीय अन्तरिक्ष के इतिहास में भी एक नया अध्याय जुड़ा हैं जब राकेश शर्मा ने अन्तरिक्ष में उड़ान भरी।
श्री राकेश शर्मा की संक्षिप्त जीवनी- श्री राकेश शर्मा का जन्म 13 जनवरी सन् । 1949 को पटियाला में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा हैदराबाद में हुई। सन् 1966 में उन्होंने स्नातक की उपाधि ली। इसके बाद वे राष्ट्रीय प्रतिरक्षा अकादमी के लिए चुने गए। इस अकादमी में खड़कवासला में उन्होंने साढ़े चार वर्ष तक प्रशिक्षण प्राप्त किया। सभी प्रकार के विमानों से उन्होने लगभग 1600 घण्टों तक उड़ान भरी है तथा सभी प्रकार के विमानों को उड़ाने में सफलता प्राप्त की है। राकेश शर्मा प्रगतिशील विचारों के हैं और उन्होंने एक पंजाबी सिख युवती से अन्तर्जातीय विवाह किया है। उनकी पत्नी मधु शर्मा नक्षत्र-नगर मास्कों में अपने पति के साथ रही। राकेश शर्मा का कपिल नामक पुत्र है तथा उनकी एक बेटी मानसी भी थी जिसकी मास्को में आपरेशन के समय मृत्यु हो गई थी।
अन्तरिक्ष यात्रा का संक्षिप्त वृत्तान्त- हमारे देश में अन्तरिक्ष विज्ञान तथा अन्तरिक्ष आयोग का कार्यालय बंगलौर में है। भारत में अन्तरिक्ष अभियान श्री विक्रम साराबाई के नेतृत्व में सन् 1963 में आरम्भ हुआ तथा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के त्याग, परिश्रम और कार्य-कुशलता के कारण अन्तरिक्ष क्षेत्र में भारत ने अनेक उपलब्धियां प्राप्त कीं। 19 अप्रैल, 1975 को भारत ने अपना पहला कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट-1 अन्तरिक्ष में भेजा। द्वितीय उपग्रह भास्कर 7 जून, 1979 को और तीसरा उपग्रह रोहिणी-1, 17 जुलाई, 1980 को छोड़ा गया। चौथा उपग्रह रोहिणी–2, 31 मई 1981 को छोड़ा गया तथा पांचवां एप्पल 19 जून, 1981 को छोड़ा गया। इसी क्रम में हमारा देश निरन्तर आगे बढ़ता गया तथा छठा उपग्रह भास्कर–2, 20 नवम्बर, 1981 को, इनसैट-1–ए, 11 अप्रैल 1982, इनसैट-1-बी 30 अगस्त, 1983 को, रोहिणी-डी-2, 17 अप्रैल 1983 को अन्तरिक्ष में भेजे गए।
राकेश शर्मा की ान, प्रयोग और अनुभव- तीन अप्रैल, 1984 का दिन भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। इस दिन 6 बज कर 36 मिनट पर सोवियत यान टी-II बेकानुर कोस्मोड्रोन से अन्तरिक्ष के लिए रवाना हुआ। इस यान में रूसी कमाण्डर यूरी मालिशेव और उड़ान इंजीनियर श्री गेन्नादि स्त्रैकालोव भी राकेश शर्मा के साथी थे। नवम्बर 1963 में प्रथम अन्तरिक्ष रूसी-यात्री यूरी गागरिन जब भारत की यात्रा पर आए थे तो उन्होंने कहा था—मुझे इस बात में जरा भी सन्देह नहीं है। कि एक दिन आयेगा जबकि अन्तरिक्ष यात्रियों के परिवार में भारतीय गणतन्त्र का एक यात्री भी शामिल होगा। यूरी गागरिन का यह कथन अब सत्य सिद्ध हो गया। जब उड़ान की तैयारी पूरी हुई तो इन तीनों यात्रियों की तैयारी से ढाई घण्टे पूर्व यान को पचास मीटर ऊंची एक मीनार के पास, लाया गया। तैयारी आरम्भ हुई और उल्टी गिनतियों का क्रम आरम्भ हुआ। मीनार के निचले भाग में शोले भड़क उठे तथा यान ऊपर की ओर उड़ चला। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति को अन्तरिक्ष यान ने 300 टन के एक राकेट की सहायता से बिना किसी कठिनाई के पार कर लिया और केवल 10 मिनट में अन्तरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया। सोवियत संघ का एक अन्तरिक्ष यान पहले से ही अन्तरिक्ष में था जिसमें तनि रूसी अन्तरिक्ष यात्री पहले से ही मौजूद थे। सोयुज़ टी-|| जो राकेश शर्मा तथा उनके साथियों को लेकर उड़ा था लगभग रात्रि 8.5 बजे सोयुज टी-10 और सोयुज टी-7 से जुड़ गया। इनमें उपस्थित यात्रियों ने राकेश शर्मा तथा उनके साथियों का हर्ष के साथ स्वागत किया।
राकेश शर्मा ने अन्तरिक्ष में जो प्रयोग किए, उनमें से मुख्य हैं—शरीर पर भारहीनता का प्रभाव और योग क्रियाओं का हृदयगति पर असर। पदार्थ विज्ञान सम्बन्धी प्रयोग में ऐसी धातुओं का मिश्रण तैयार करना, जो धरती पर सम्भव नहीं होता। भू-सम्पदा की खोज–भारत भू पर पृथ्वी के नीचे कौन-सी सम्पदा छिपी है। इसके लिए शक्तिशाली कैमरों से चित्र लेना।
यात्रा के बाद भारतीय पत्रकारों से मिलते हुए उन्होंने कहा था-“मैं उन सब का आभारी हूं, जिनके आर्शीवाद और शुभकामनाओं से हम सकुशल अपना कार्य करके वापस धरती पर लौट आए।”
5 मई, 1984 को राकेश शर्मा दोनों रूसी अन्तरिक्ष यात्रियों तथा साथी रबीश मल्होत्रा के साथ भारत वापिस आए। पालम हवाई अड्डे पर उनका हार्दिक स्वागत किया गया। भारतवासियों ने अन्तरिक्ष विजेता व्योमपुत्र राकेश शर्मा का हार्दिक अभिनन्दन किया। भारत। सरकार ने उन्हें तथा उनके सोवियत साथियों को ‘अशोक-चक्र’ प्रदान कर सम्मानित किया। सोवियत संघ ने उन्हें ‘सोवियत संघ के वीर’ उपाधि से सम्मानित किया।
उपसंहार- राकेश शर्मा ने अपनी अन्तरिक्ष यात्रा में जो चित्र खींचे हैं उनका अब अध्ययन किया जा रहा है तथा इनसे नि:सन्देह भारत की खनिज सम्पदा का ज्ञान होगा और अन्य अनेक बातों की जानकारी भी मिलेगी। उनकी इस अन्तरिक्ष यात्रा से भारत और रूस की मैत्री सुदृढ़ हुई है। भारत अन्तरिक्ष प्रगति में आगे बढ़ा है और इससे भारत के भावी आर्थिक विकास तथा समृद्धि पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। निकट भविष्य में इनसे भारत को। नि:सन्देह लाभ होगा। राकेश शर्मा होनहार, परिश्रमी और मेधावी सौम्य भारतीय युवक है। तथा देश उनकी इस साहसी यात्रा के लिए उनका विशेष आभारी है। भारत के इस व्योम-पुत्र की चिरायु की हम शुभ कामना करते हैं।
श्री राकेश शर्मा की संक्षिप्त जीवनी- श्री राकेश शर्मा का जन्म 13 जनवरी सन् । 1949 को पटियाला में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा हैदराबाद में हुई। सन् 1966 में उन्होंने स्नातक की उपाधि ली। इसके बाद वे राष्ट्रीय प्रतिरक्षा अकादमी के लिए चुने गए। इस अकादमी में खड़कवासला में उन्होंने साढ़े चार वर्ष तक प्रशिक्षण प्राप्त किया। सभी प्रकार के विमानों से उन्होने लगभग 1600 घण्टों तक उड़ान भरी है तथा सभी प्रकार के विमानों को उड़ाने में सफलता प्राप्त की है। राकेश शर्मा प्रगतिशील विचारों के हैं और उन्होंने एक पंजाबी सिख युवती से अन्तर्जातीय विवाह किया है। उनकी पत्नी मधु शर्मा नक्षत्र-नगर मास्कों में अपने पति के साथ रही। राकेश शर्मा का कपिल नामक पुत्र है तथा उनकी एक बेटी मानसी भी थी जिसकी मास्को में आपरेशन के समय मृत्यु हो गई थी।
अन्तरिक्ष यात्रा का संक्षिप्त वृत्तान्त- हमारे देश में अन्तरिक्ष विज्ञान तथा अन्तरिक्ष आयोग का कार्यालय बंगलौर में है। भारत में अन्तरिक्ष अभियान श्री विक्रम साराबाई के नेतृत्व में सन् 1963 में आरम्भ हुआ तथा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के त्याग, परिश्रम और कार्य-कुशलता के कारण अन्तरिक्ष क्षेत्र में भारत ने अनेक उपलब्धियां प्राप्त कीं। 19 अप्रैल, 1975 को भारत ने अपना पहला कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट-1 अन्तरिक्ष में भेजा। द्वितीय उपग्रह भास्कर 7 जून, 1979 को और तीसरा उपग्रह रोहिणी-1, 17 जुलाई, 1980 को छोड़ा गया। चौथा उपग्रह रोहिणी–2, 31 मई 1981 को छोड़ा गया तथा पांचवां एप्पल 19 जून, 1981 को छोड़ा गया। इसी क्रम में हमारा देश निरन्तर आगे बढ़ता गया तथा छठा उपग्रह भास्कर–2, 20 नवम्बर, 1981 को, इनसैट-1–ए, 11 अप्रैल 1982, इनसैट-1-बी 30 अगस्त, 1983 को, रोहिणी-डी-2, 17 अप्रैल 1983 को अन्तरिक्ष में भेजे गए।
राकेश शर्मा की ान, प्रयोग और अनुभव- तीन अप्रैल, 1984 का दिन भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। इस दिन 6 बज कर 36 मिनट पर सोवियत यान टी-II बेकानुर कोस्मोड्रोन से अन्तरिक्ष के लिए रवाना हुआ। इस यान में रूसी कमाण्डर यूरी मालिशेव और उड़ान इंजीनियर श्री गेन्नादि स्त्रैकालोव भी राकेश शर्मा के साथी थे। नवम्बर 1963 में प्रथम अन्तरिक्ष रूसी-यात्री यूरी गागरिन जब भारत की यात्रा पर आए थे तो उन्होंने कहा था—मुझे इस बात में जरा भी सन्देह नहीं है। कि एक दिन आयेगा जबकि अन्तरिक्ष यात्रियों के परिवार में भारतीय गणतन्त्र का एक यात्री भी शामिल होगा। यूरी गागरिन का यह कथन अब सत्य सिद्ध हो गया। जब उड़ान की तैयारी पूरी हुई तो इन तीनों यात्रियों की तैयारी से ढाई घण्टे पूर्व यान को पचास मीटर ऊंची एक मीनार के पास, लाया गया। तैयारी आरम्भ हुई और उल्टी गिनतियों का क्रम आरम्भ हुआ। मीनार के निचले भाग में शोले भड़क उठे तथा यान ऊपर की ओर उड़ चला। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति को अन्तरिक्ष यान ने 300 टन के एक राकेट की सहायता से बिना किसी कठिनाई के पार कर लिया और केवल 10 मिनट में अन्तरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया। सोवियत संघ का एक अन्तरिक्ष यान पहले से ही अन्तरिक्ष में था जिसमें तनि रूसी अन्तरिक्ष यात्री पहले से ही मौजूद थे। सोयुज़ टी-|| जो राकेश शर्मा तथा उनके साथियों को लेकर उड़ा था लगभग रात्रि 8.5 बजे सोयुज टी-10 और सोयुज टी-7 से जुड़ गया। इनमें उपस्थित यात्रियों ने राकेश शर्मा तथा उनके साथियों का हर्ष के साथ स्वागत किया।
राकेश शर्मा ने अन्तरिक्ष में जो प्रयोग किए, उनमें से मुख्य हैं—शरीर पर भारहीनता का प्रभाव और योग क्रियाओं का हृदयगति पर असर। पदार्थ विज्ञान सम्बन्धी प्रयोग में ऐसी धातुओं का मिश्रण तैयार करना, जो धरती पर सम्भव नहीं होता। भू-सम्पदा की खोज–भारत भू पर पृथ्वी के नीचे कौन-सी सम्पदा छिपी है। इसके लिए शक्तिशाली कैमरों से चित्र लेना।
यात्रा के बाद भारतीय पत्रकारों से मिलते हुए उन्होंने कहा था-“मैं उन सब का आभारी हूं, जिनके आर्शीवाद और शुभकामनाओं से हम सकुशल अपना कार्य करके वापस धरती पर लौट आए।”
5 मई, 1984 को राकेश शर्मा दोनों रूसी अन्तरिक्ष यात्रियों तथा साथी रबीश मल्होत्रा के साथ भारत वापिस आए। पालम हवाई अड्डे पर उनका हार्दिक स्वागत किया गया। भारतवासियों ने अन्तरिक्ष विजेता व्योमपुत्र राकेश शर्मा का हार्दिक अभिनन्दन किया। भारत। सरकार ने उन्हें तथा उनके सोवियत साथियों को ‘अशोक-चक्र’ प्रदान कर सम्मानित किया। सोवियत संघ ने उन्हें ‘सोवियत संघ के वीर’ उपाधि से सम्मानित किया।
उपसंहार- राकेश शर्मा ने अपनी अन्तरिक्ष यात्रा में जो चित्र खींचे हैं उनका अब अध्ययन किया जा रहा है तथा इनसे नि:सन्देह भारत की खनिज सम्पदा का ज्ञान होगा और अन्य अनेक बातों की जानकारी भी मिलेगी। उनकी इस अन्तरिक्ष यात्रा से भारत और रूस की मैत्री सुदृढ़ हुई है। भारत अन्तरिक्ष प्रगति में आगे बढ़ा है और इससे भारत के भावी आर्थिक विकास तथा समृद्धि पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। निकट भविष्य में इनसे भारत को। नि:सन्देह लाभ होगा। राकेश शर्मा होनहार, परिश्रमी और मेधावी सौम्य भारतीय युवक है। तथा देश उनकी इस साहसी यात्रा के लिए उनका विशेष आभारी है। भारत के इस व्योम-पुत्र की चिरायु की हम शुभ कामना करते हैं।
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