Hindi, asked by rahules1839, 1 year ago

An essay on vishwas and sankalp see sab kuch sambav hair

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Answered by Rockstaranant
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जीवन-निर्माण के प्रत्येक क्षेत्र में संकल्प शक्ति को विशिष्ट स्थान मिला है। यों प्रत्येक इच्छा एक तरह की संकल्प ही होती है, किन्तु तो भी इच्छायें संकल्प की सीमा का स्पर्श नहीं कर पातीं। उनमें पूर्ति का बल नहीं होता, अतः वे निर्जीव मानी जाती हैं। वहीं इच्छायें जब बुद्धि, विचार और दृढ़ भावना द्वारा परिष्कृत हो जाती हैं तो संकल्प बन जाती हैं। ध्येय सिद्धि के लिये इच्छा की अपेक्षा संकल्प में अधिक शक्ति होती है। संकल्प उस दुर्ग के समान है जो भयंकर प्रलोभन, दुर्बल एवं डाँवाडोल परिस्थितियों से भी रक्षा करता हैं और सफलता के द्वार तक पहुँचाने में मदद करता है। शास्त्रकार ने “सकल्प मूलः कामौं” अर्थात् कामना पूर्ति का मूल-संकल्प बताया है। इसमें संदेह नहीं है, प्रतिज्ञा, नियमाचरण तथा धार्मिक अनुष्ठानों से भी वृहत्तर शक्ति संकल्प में होती है।

महान विचारक एमर्सन ने लिखा है, “इतिहास इस बात का साक्षी है कि मनुष्य की संकल्प शक्ति के सम्मुख देव, दनुज सभी पराजित होते रहे हैं।”

उत्कृष्ट या निकृष्ट जीवन यथार्थतः मनुष्य के विचारों पर निर्भर है। कर्म हमारे विचारों के रूप हैं। जिस बात की मन में प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, वह अपनी पसन्द या दृढ़ इच्छा के कारण गहरी नींव पकड़ लेती है, उसी के अनुसार बाह्य जीवन का निर्माण होने लगता है।

विचार यों अव्यक्त मन से भी प्रस्फुटित होते हैं, किन्तु वे प्रभावशाली नहीं होते। संकल्प भी एक तरह की विचार उत्पादक शक्ति है। इस तरह के विचार क्रमिक एवं योजना-बद्ध होते हैं। अव्यक्त विचारों की अपेक्षा उनकी शक्ति भी अधिक प्रखर होती है। इसलिये जो काम विशेष संकल्प के साथ किये जाते है, वे प्रायः असफल नहीं होते।

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