अनुच्छेद-जब मैनें पक्षी पाला
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अनुच्छेद-जब मैंने पक्षी पाला
मुझे पक्षी पालने का बहुत शौक था | मैंने अपने शौक को पूरा करने के लिए मैंने एक तोता पाला | उसके लिए मैंने अच्छा सा घर बनाया और पिंजरा ले कर आई | उसको रोज-रोज अच्छा खान देती थी और बहुत अच्छे से ध्यान रखती थी | एक दिन सुबह तोता खिड़की से बहार की और देख रहा था और उसने कुछ खाया भी नहीं था मैंने उसे बहुत जबरदस्ती की लेकिन उसने कुछ नहीं खाया | उस दिन मुझे अहसास हुआ वह अपनी आज़ादी चाहता है , वह उड़ना चाहता , अपने दोस्तों के साथ मस्ती करना चाहता है | यहाँ उसके पास कुछ है लेकिन वह खुश नहीं है | मैंने उसी दिन निर्णय लिया मैं कभी कोई पक्षी पालूँगी| किसी की आज़ादी छिनना पाप है | मैंने उसी दिन तोते जो आज़ाद कर दिया और वह खुशी से उड़ गया |
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अनुच्छेद-जब मैनें पक्षी पाला
Explanation:
मुझे पक्षी बड़ी प्रिय लगते हैं और हमेशा से उन्हें पालने का ख्याल मेरे दिमाग में चलता रहता है| आखिरकार एक दिन मैंने पापा को कहा कि मैंने एक तोते को पालना है। उन्होंने मुझे समझाया कि यह ठीक नहीं है लेकिन मैं नहीं माना और एक तोते को बाजार से खरीद कर घर ले आया। मैं बहुत खुश था तोते को पिंजरे में डाला उसे खाना पानी देने लगा।
लेकिन वह बेचारा बड़ा निराश और मायूस था ना खाना खा रहा था ना पानी पी रहा था। तब मुझे आभास हुआ कि किसी को इस तरह कैद करके रखना अच्छी बात नहीं है। मुझे अनायास ही सातवीं कक्षा की वह कविता याद आ गई "हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजर बद्ध न गा पाएंगे, कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे, हम बहता जल पीने वाले मर जाएंगे भूखे प्यासे, कहीं भली है कटुक निबोरी कनक कटोरी की मैदा से"।
तथा मुझे गुरु जी ने जो पक्षियों की पीड़ा के बारे में बताया था जिसमें विस्मृत हो गया था वह अनायास ही याद आने लगा। मेरे हृदय में ऐसा परिवर्तन हुआ कि मैंने तुरंत तोते को पिंजरे से बाहर छोड़ दिया तथा वह खुले आकाश में बड़ी तीव्र गति से गया और मुझे आनंद की अनुभूति हुई।