Hindi, asked by b5a5walshrine, 1 year ago

अनुच्छेद लिखिए
हस्तकला तथा शिल्प
• भूमिका
• इतिहास
• वर्तमान स्थिति
• भविष्य

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Answered by LovelysHeart
40

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हस्तकला (Handicraft) ऐसे कलात्मक कार्य को कहते हैं जो उपयोगी होने के साथ-साथ सजाने के काम आता है तथा जिसे मुख्यत: हाथ से या सरल औजारों की सहायता से ही बनाया जाता है। ऐसी कलाओं का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व होता है। इसके विपरीत ऐसी चीजें हस्तशिल्प की श्रेणी में नहीं आती जो मशीनों द्वारा बड़े पैमाने पर बनाये जाते हैं।

भारतीय हस्तशिल्प संपादित करें

भारत हस्तशिल्प का सर्वोत्कृष्ट केन्द्र माना जाता है। यहाँ दैनिक जीवन की सामान्य वस्तुएँ भी कोमल कलात्मक रूप में गढ़ी जाती हैं। यह हस्तशिल्प भारतीय हस्तशिल्पकारों की रचनात्मकता को नया रूप प्रदान करने लगे हैं। भारत का प्रत्येक क्षेत्र अपने विशिष्ट हस्तशिल्प पर गर्व करता है। उदाहरणार्थ— कश्मीर कढ़ाई वाली शालों, गलीचों, नामदार सिल्क तथा अखरोट की लकड़ी के बने उपस्कर (फर्नीचर) के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान बंधनी काम के वस्त्रों, कीमती हीरे-जवाहरात जरे आभूषणों, चमकते हुए नीले बर्त्तन और मीनाकारी के काम के लिए प्रसिद्ध है। आंध्रप्रदेश अपने बीदरी के काम तथा पोचमपल्ली की सिल्क साड़ियों के लिए प्रख्यात है। तमिलनाडु ताम्र मूर्त्तियों एवं कांजीवरम साड़ियों के लिए जाना जाता है तो मैसूर रेशम और चंदन की लकड़ी की वस्तुओं के लिए तथा केरल हाथी दाँत की नक्काशी व शीशम की लकड़ी के उपस्कर के लिए प्रसिद्ध है। मध्यप्रदेश की चंदेरी और कोसा सिल्क, लखनऊ की चिकन, बनारस की ब्रोकेड़ और जरी वाली सिल्क साड़ियाँ तथा असम का बेंत का उपस्कर, बांकुरा का टेराकोटा तथा बंगाल का हाथ से बुना हुआ कपड़ा, भारत के विशिष्ट पारम्परिक सजावटी दस्तकारी के उदाहरण हैं। ये आधुनिक भारत की विरासत के भाग हैं। ये कलाएँ हजारों सालों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी पोषित होती रही हैं और हजारों हस्तशिल्पकारों को रोजगार प्रदान करती हैं। इस प्रकार देखा जा सकता है भारतीय शिल्पकार किस तरह अपने जादुई स्पर्श से एक बेजान धातु, लकड़ी या हाथी दाँत को कलाकृति में बदलकर भारतीय हस्तशिल्प को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अतुलनीय पहचान दिलाते हैं।

हस्तकलाएं

रचनात्मकता मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति और क्षमता के बल पर मनुष्य ने अनेक कलाओं को जन्म दिया। इनमें से प्रत्येक कला की अपनी पृथक मौलिक विशेषताएं थीं। रुहेलखण्ड क्षेत्र प्रारम्भ से ही विविध हस्तकलाओं की भूमि रहा है। इस तथ्य की पुष्टि अहिच्छत्र इत्यादि पुरास्थलों के उत्खनन में प्राप्त विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों से होती है। यहाँ की कलाओं में कुछ अपने परम्परागत रुप में विद्यमान हैं। ऐसी कलाओं के केन्द्र रुहेलखण्ड के गाँव हैं। दूसरी ओर कुछ कलाओं ने समय के साथ-साथ बढ़ती हुई माँग के अनुसार वृहद् और व्यावसायिक रुप ग्रहण कर लिया है। इस प्रकार की कलाओं के केन्द्र प्रायः रुहेलखण्ड क्षेत्र के नगर हैं। हालांकि परम्परागत ग्रामीण हस्तकलाएं भी व्यावसायिक रुप ग्रहण कर रही हैं, लेकिन उनका व्यावसायिक स्वरुप आस-पास के ग्रामीण इलाकों तक ही सीमित है।

इस तरह रुहेलखण्ड की हस्तकलाओं को निम्नलिखित वर्गीकरण के अन्तर्गत समझा जा सकता है-

(1 ) परम्परागत ग्रामीण हस्तकलाएं

(2 ) व्यावसायिक रुप ग्रहण कर चुकी हस्तकलाएं

(1 ) परम्परागत ग्रामीण हस्तकलाएं

रुहेलखण्ड क्षेत्र के गाँवों में विभिन्न प्रकार की हस्तकलाओं के दर्शन होते हैं, जिनमें गाँव के स्री, पुरुष तथा बच्चे अत्यन्त निपुण हैं। इन कलाओं में अग्रलिखित प्रमुख हैं-

(i ) डलिया निर्माण

(ii ) चटौना निर्माण

(iii ) हाथ के पंखे

(iv ) सूप

(v ) मिट्टी के बर्तन

(i ) डलिया निर्माणः

रुहेलखण्ड क्षेत्र के गाँवों में डलिया निर्माण एक प्रमुख हस्तकला है। यह डलिया विभिन्न रंगों और डिजायनों में बनाई जाती हैं। ग्रामीण परिवार की महिलाएं इन डलियों को बनाने में अत्यन्त निपुण होती हैं। इन डलियों का निर्माण भरा नामक जंगली घास से निकली एक विशिष्ट प्रकार की छाल (बरुआ) से किया जाता है। यह जंगली घास यहाँ के गाँवों में आसानी से उपलब्ध है। सर्वप्रथम बरुआ की छाल की गोलाकार (रस्सी की आकृति के समतुल्य) बत्तियाँ बनाई जाती हैं। अब इन बत्तियों पर विभिन्न प्रकार के रंग लगाए जाते हैं। ये रंग विशिष्ट प्रकार के होते हैं तथा इनको गर्म पानी में घोलकर तैयार किया जाता है, ताकि यह पक्के बने रहें।

रंग सूख जाने के उपरान्त विभिन्न रंगों की बत्तियों को एक-दूसरे के ऊपर गोलाकृति में व्यवस्थित करके डलिया का आकार दिया जाता है। डलिया निर्मित हो जाने के उपरान्त कई बार डलिया के किनारों पर रंगे-बिरंगे कपड़ों की झल्लरें लगाई जाती हैं। प्रायः इन झल्लरों पर काँच के छोटे-छोटे टुकड़ों से भी सजावट की जाती है। इस प्रकार निर्मित डलिया देखने में अत्यन्त मोहक प्रतीत होती हैं। यह डलिया वजन में हल्की तथा बहु उपयोगी होती है।

(ii ) चटौना निर्माणः

पूजा तथा भोजन के दौरान बैठने के लिए आसन के रुप में प्रयुक्त चटौना रुहेलखण्ड की ग्रामीण कला का एक मुख्य अंग है। ग्रामीण परिवार की लड़कियाँ तथा महिलाएं चटौना बनाने में विशेष रुप से दक्ष होती हैं। इनको बनाने में भी भरा नामक जंगली घास से प्राप्त बरुआ की छाल प्रयुक्त होती है। डलिया निर्माण की भाँति चटौने को बनाने में भी सर्वप्रथम बरुआ की छाल की गोलाकार लम्बी बत्ती बनाई जाती हैं। अब इन बत्तियों पर गर्म पानी में पृथक-पृथक घोलकर तैयार किए गए विभिन्न रंग लगाए जाते हैं। रंग सूख जाने के उपरान्त उस बत्तियों को चक्राकार घुमाते हुए

तथा बत्ती की परतों को आपस में संयुक्त करते हुए चटौने को अन्तिम रुप दिया जाता है। चटौने को आवश्यकता के अनुरुप किसी भी आकार में बनाया जा सकता है। ये चटौना अत्यन्त हल्का तथा आरामदायक होता है। इसकी खूबसूरती के कारण लोग इसे अपने घरों में सजावट के लिए भी प्रयुक्त करते हैं।

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Answered by hemantsuts012
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Answer:

Explanation:

भूमिका- हस्तशिल्प रचनात्मक उत्पाद हैं जो बिना किसी आधुनिक मशीनरी और उपकरण की सहायता के हस्त कौशल द्वारा बनाए जाते हैं। आजकल हस्तनिर्मित उत्पादों को भी फैशन और विलासिता की वस्तु माना जाता है। हस्तशिल्प इन वस्तुओं को बनाने वाले पारंपरिक कारीगरों की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है।

इतिहास वर्तमान स्थिति सदियों से, भारत के हस्तशिल्प जैसे कश्मीरी ऊनी कालीन, जरी कढ़ाई वाले वस्त्र, टेराकोटा और चीनी मिट्टी के उत्पाद, रेशम के वस्त्र आदि ने अपनी विशिष्टता बनाए रखी है। प्राचीन काल में, इन हस्तशिल्पों को 'रेशम मार्ग' के माध्यम से यूरोप, अफ्रीका, पश्चिम एशिया और सुदूर पूर्व के सुदूर देशों में निर्यात किया जाता था। भारतीय हस्तशिल्प की यह सारी संपदा हर युग में रही है। इन शिल्पों में भारतीय संस्कृति का जादुई आकर्षण है जो इसकी विशिष्टता, सुंदरता, गौरव और विशिष्टता का आश्वासन देता है।

बढ़ती मांग के अनुसार कुछ कलाओं ने समय बीतने के साथ एक बड़ा और व्यावसायिक रूप प्राप्त कर लिया है। इस प्रकार की कलाओं के केंद्र आमतौर पर रोहिलखंड क्षेत्र के शहर होते हैं। यद्यपि पारंपरिक ग्रामीण हस्तशिल्प भी व्यावसायिक रूप ले रहे हैं, उनकी व्यावसायिक प्रकृति आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सीमित है।

भविष्य- देश के हस्तशिल्प उद्योग में असीम अवसर मौजूद हैं। उत्पाद विकास और डिजाइन के उन्नयन पर अब अधिक ध्यान दिया जा रहा है। घरेलू और पारंपरिक बाजार में भारतीय हस्तशिल्प की मांग बढ़ रही है। विकसित देशों के उपभोक्ता यहां के हस्तशिल्प की सराहना करते हैं और यह चलन बढ़ता ही जा रहा है। सरकार अब इस उद्योग का समर्थन कर रही है और हस्तशिल्प के संरक्षण में रुचि ले रही है। लैटिन अमेरिका, उत्तरी अमेरिका और यूरोपीय देशों के उभरते बाजारों ने इस क्षेत्र में अवसर खोले हैं। हस्तशिल्प के व्यापार में उचित व्यवहार भी इस क्षेत्र में अवसरों को बढ़ा रहे हैं। अधिक पर्यटक अब भारत आ रहे हैं, जो उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार उपलब्ध करा रहा है।

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