Hindi, asked by ElnaMaria, 2 months ago

अनुच्छेद लेखन
1. क्रिसमस दिवस
2. सत्संगती​

Answers

Answered by balajispadalwar
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Explanation:

. क्रिसमस दिवस

अगर हम क्रिसमस की महत्त्व की बात करें तो क्रिसमस त्यौहार ईसाईयों का प्रमुख पर्व है। ईसामसीह का जन्म 25 दिसंबर को रात बारह बजे हुआ था। इसलिए हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस डे बनाया जाता है। मना जाता है कि ईसामसीह का जन्म 25 दिसंबर को रात बारह बजे बेथलहेम शहर की एक गौशाला में हुआ था।

. सत्संगती

मनुष्य के चरित्र-निर्माण में संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है । हमारे शास्त्रों में सत्संगति को बहुत महत्त्व दिया गया है । सत्संगति अर्थात सच्चरित्र व्यक्तियों के सम्पर्क में रहना, उनसे सम्बन्ध बनाना । सचरित्र व्यक्तियों, सज्जनों, विद्वानों आदि की संगति से साधारण व्यक्ति भी महत्त्वपूर्ण बन जाता है ।

सत्संगति मनुष्य को सदैव धर्म-कर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है और बुराइयों से बचाव के दिशा-निर्देश देती है । सत्संगति से ही मनुष्य में मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं और उसका जीवन सार्थक बनता है । सत्संगति में ज्ञानहीन मनुष्य को भी विद्वान बनाने की सामर्थ्य होती है ।

सत्संगति वास्तव में मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने का कार्य करती है और उसमें सद्‌गुणों का संचार करती है । इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाला प्रत्येक बालक अबोध होता है । उस पर सर्वप्रथम परिवार की संगति का प्रभाव पड़ता है । बड़ा होकर बालक घर से बाहर निकलकर विद्यालय में ज्ञान प्राप्त करता है और शिक्षकों, मित्रों, आदि की संगति का उस पर बहुत प्रभाव पड़ता है ।

धीरे-धीरे आयु बढ़ने के साथ मनुष्य जीवन का अर्थ समझने का प्रयास करता है और उसकी संगति के अनुसार ही जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बनता है । सत्संगति मनुष्य को उच्च विचारों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है और उसके चरित्र-बल को बढ़ाती है जबकि कुसंगति में मनुष्य के चरित्र में निरन्तर गिरावट आती है और मनुष्य पथभ्रष्ट होकर स्वयं अपना बहुमूल्य जीवन तबाह कर लेता है ।

मानव-जीवन ईश्वर की अमूल्य देन है । मनुष्य इस पृथ्वी पर धर्म-कर्म के पथ पर चलते हुए मानव-समाज का विकास करने के लिए जन्म लेता है । सत्संगति जीवन को अर्थपूर्ण बनाने के लिए प्रेरित करती है, ताकि मानव-समाज उन्नति कर सके ।

स्पष्टतया कुसंगति मनुष्य को पतन के मार्ग पर ले जाती है और सपूर्ण मानव-जाति के लिए अहितकर सिद्ध होती है । कुसंगति से मनुष्य में अनेक बुराइयों जन्म लेने लगती हैं । कुसंगति मनुष्य को व्यसनी, व्यभिचारी बना देती है और ऐसे व्यक्ति मानव-समाज की सुख-शांति भंग करने के साथ स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हैं ।

स्पष्टतया सद्‌विचारों सज्जनों से ही मानव-समाज की सुख-शांति स्थिर रह सकती है । सद्‌विचार मनुष्य को कर्त्तव्यों का पालन करना सिखाते हैं और उनसे मनुष्य में संघर्ष की भावना जन्म लेती है । संघर्ष से ही मनुष्य उन्नति करता है और उसे सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं ।

सद्‌विचारों से मनुष्य को मर्यादा में रहने की प्रेरणा मिलती है और मर्यादा में रहकर ही मनुष्य समाज की सुख-शांति बनाए रख सकता है । दूसरी ओर कुसंगति से मनुष्य की शक्ति क्षीण होती है । उसमें संघर्ष की भावना समाप्त होने लगती है और वह कामचोर बन जाता है ।

ऐसे व्यक्ति सदैव दूसरों की धन-सम्पत्ति पर आनन्द उठाने को ही जीवन समझते हैं और मर्यादाएँ लांघते हुए वे समाज के लिए खतरा बनते रहते हैं । चोर, डकैत, धोखेबाज बुराई के रास्ते पर अनेक खतरे उठाने के लिए तैयार रहते हैं, परन्तु उनमें ईमानदारी से परिश्रम करने की क्षमता नहीं रहती । वे एक बार में अधिकाधिक धन लूटकर महीनों आराम से रहने को ही जीवन का आनन्द समझते हैं ।

ऐसे लोग समाज की सुख-शांति तो भंग करते ही हैं, अंतत: अकाल मृत्यु का भी शिकार बनते हैं । अवसर मिलने पर लोग चोर, डकैतों पर हमला कर देते हैं अथवा वे पुलिस मुठभेड़ में मारे जाते हैं । सार्थक जीवन के लिए मनुष्य को सत्संगति र्का ही आवश्यकता होती है ।

सज्जनने र्को संगति में ही मनुष्य को जीवन के वास्तविक अर्थ का ज्ञान होता है । साधुजनों की प्रेरणा से ही मनुष्य जीवन के मृत्य को पहचानता है । वह सदैव बुराई के रास्ते से बचा रहता है ताकि अपने मूल्यवान जीवन को नष्ट होने से बचा सके । सत्संगति से ही मनुष्य को यह ज्ञान होता है कि यह जीवन बार-बार प्राप्त नहीं होता ।

सौभाग्य से प्राप्त हुए जीवन को सार्थक बनाने के लिए सत्य के मार्ग पर चलना आवश्यक है । सत्य के मार्ग पर चलकर ही मनुष्य महान कार्य करता है और मानव-समाज को दिशा देता है । अत: समाज के विकास के लिए सत्संगति महत्त्वपूर्ण है ।

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