अनुच्छेद लेखन : मन की संचलता
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मन चंचल है मैं आपको निवेदन करना चाहता हूं, मन निश्चित ही चंचल है, लेकिन मन की चंचलता बुरी बात नहीं है। मन की चंचलता उसके जीवंत होने का प्रमाण है। जहां जीवन है, वहां गति है; जहां जीवन नहीं है, जड़ता है, वहां कोई गति नहीं है। मन की चंचलता आपके जीवित होने का लक्षण है, चंचलता रोक लेना ही कोई अर्थ की बात नहीं है।
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मन की चंचलता ----हम सभी जानते हैं कि मन बहुत ही चंचल है । क्षण – क्षण बदलता रहता है । मन बदलता रहता है तो बुद्दि भी स्थिर नहीं रहता इसलिए कहा गया है कि शरीर के विकास के साथ –साथ मन के विकास पर भी ध्यान देना आवश्यक है । मन पर जिनका नियंत्रण है , उनका नैतिक विकास भी उन्नत है , वे अच्छे कर्म में प्रवृत रहते हैं , लेकिन जिनका मन नियंत्रित नहीं है उनकी बुद्धि भी भ्रष्ट रहती है और कर्म निश्चित रूप से हितदायक नहीं होता ।
मन चंचल है मैं आपको निवेदन करना चाहता हूं, मन निश्चित ही चंचल है, लेकिन मन की चंचलता बुरी बात नहीं है। मन की चंचलता उसके जीवंत होने का प्रमाण है। जहां जीवन है, वहां गति है; जहां जीवन नहीं है, जड़ता है, वहां कोई गति नहीं है। मन की चंचलता आपके जीवित होने का लक्षण है, चंचलता रोक लेना ही कोई अर्थ की बात नहीं है। चंचलता रुक जाना ही कोई बड़ी गहरी खोज नहीं है। और चंचलता को रोकने के जितने अभ्यास हैं, वे सब मनुष्य की बुद्धिमत्ता को, उसकी विज़डम को, उसकी इंटेलिजेंस को, उसकी समझ, उसकी अडरस्टैंडिंग को, सबको क्षीण करते हैं, कम करते हैं। जड़ मस्तिष्क मेधावी नहीं रह जाता।
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मन की पर अनुच्छेद लेखन