अनुच्छेद लेखन -
सिच्चा मित्र' पर
अनुच्छेद।
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सच्चा मित्र
सच्चा मित्र वही है जो मित्र के दु:ख में काम आता है। वह मित्र के कण जैसे दु:ख को भी मेरु के समान भारी मानकर उसकी सहायता करता है। एक सच्चा मित्र प्राणों से भी अधिक मूल्यवान होता है। मित्रता के अभाव में जीवन सूना हो जाता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार- “सच्ची मित्रता में उत्तम वैद्य की-सी निपुणता और परख होती है। अच्छी-से-अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है।” गोस्वामी तुलसीदास ने सच्चे मित्र के विषय में कहा है-
जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी,
तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।
निज दुःख गिरि सम रजे करि जाना,
मित्रक दु:ख रज मेरु समाना।।
सच्चा मित्र हमारे लिए प्रेरक, सहायक और मार्गदर्शक का काम करता है। जब भी हम निराश होते हैं, मित्र हमारी हिम्मत बढ़ाता है। जब हम परास्त होते हैं, वह उत्साह देता है। सच्चा मित्र हमारे लिए शक्तिवर्धक औषधि बनकर सामने आता है। वह हमें पथभ्रष्ट होने से भी बचाता है और सन्मार्ग की ओर अग्रसर करता है। सच्चा मित्र | सरलता से नहीं मिलता। इसलिए मित्र का चुनाव सोच-समझकर करना चाहिए। केवल बाहरी चमक-दमक, वाक्प टुता अथवा आर्थिक स्थिति को देखकर ही मित्र का चयन कर लेना उचित नहीं है, इसके लिए उसके व्यवहार, आचरण तथा अन्य बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है। सच्चा मित्र सच्चरित्र, विनम्र, सदाचारी तथा विश्वास पात्र होना चाहिए, क्योंकि सच्ची मित्रता मनुष्य के लिए वरदान है। किसी ने ठीक ही कहा है- ‘सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता उससे भी दुर्लभ।’
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