अनुच्छेद लेखन
शिक्षक- शिक्षार्थी संबंध
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परम्परागत गुरु शिष्य संबंध- भारतीय संस्कृति और सामाजिक व्यवहार में गुरु को बहुत सम्मानीय स्थान दिया गया हैं. गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, शिव नहीं साक्षात परमब्रह्मा के तुल्य माना गया हैं. गुरु को यह सम्मान उनके चरित्र की महानता और विद्या को जीवन में अत्यंत महत्व दिए जाने के कारण प्राप्त हुआ था. गुरु में श्रद्धा रखने के संस्कार शिष्य को परिवार से ही प्राप्त हो जाते थे.
वर्तमान स्थिति- आज गुरु शिक्षक और शिष्य छात्र बन गया हैं. कुछ अपवादों को छोड़ दे तो गुरु शिष्य के बीच अब केवल औपचारिक या व्यवसायिक संबंध ही शेष रह गये हैं. चिकित्सा, वकालत, व्यापार आदि की तरह शिक्षण भी एक व्यवसाय मात्र रह गया हैं.
छात्र शुल्क देता हैं. और बदले में उसे शिक्षकों की सेवाएं प्राप्त होती हैं. श्रद्धा, सम्मान, दायित्व जैसे भावनात्मक सम्बन्धों की कोई उपयोगिता नहीं रह गई हैं. आज विद्यालयों में शैक्षिक वातावरण दुर्लभ हो गया हैं. हड़ताल, प्रदर्शन, गुटबंदी, मारपीट ये विद्यालयों के द्रश्य आम हो गये हैं. न छात्रों में शिक्षकों के प्रति श्रद्धाभाव है और न शिक्षकों में छात्रों के प्रति दायित्व की भावना.
परिवर्तन के कारण- विद्या मन्दिरों बल्कि कहे तो शिक्षालयों के वातावरण और गुरु शिष्यों सम्बन्धों के विघटन के अनेक कारण हैं. सर्वप्रथम है पारिवारिक संस्कारों का क्षय. आज परिवार में गुरु के प्रति श्रद्धाभाव की शिक्षा ही नहीं मिलती हैं. इसके अतिरिक्त शिक्षक भी अपने आचरण की श्रेष्टता भुला बैठे हैं.