अनुच्छेद -"वीडियो- गेम मनोरंजन या झांसा"
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वर्तमान युग विज्ञान का युग है । आज वैज्ञानिकों ने नए-नए आविष्कार करने की होड़ लगी हुई है । प्रत्यक वैज्ञानिक कोई न कोई आविष्कार कर नाम कमाना चाहता है ।
प्राचीन काल में बड़े-बड़े लोग अपना मनोरंजन जानवरों का शिकार करके या दो जानवरों के बीच लड़ाई कराके करते थे । जैसे कि आज भी मुर्गे की लड़ाई कराके या देखकर लोग आनन्दित होते हैं । उस समय मनोरंजन के साधन कम थे ।
समाज के विकास के साथ-साथ मनोरंजन कार्यक्रमों की बाद सी आ गई है । आज का मानव व्यस्तता के कारण थक जाता है । वह मनोरंजन के लिए साधन ढूंढता है जिससे वह प्रसन्नता अनुभव कर सके । प्राचीन समय से ही मानव मनोरंजन प्रिय रहा है ।
भारत की नाट्य कला विश्व प्रसिद्ध है और उसका इतिहास नितान्त गौरवशाली रहा है । पहले संस्कृत के नाटक रंगमंच पर खेले जाते थे । धीरे-धीरे हिन्दी के नाटक भी लोकप्रिय हो गए । लोग नाटक देखने के लिए नाटकशालाओं में जाते थे । वहाँ प्रत्यक्ष ही नाटकों के पात्रों के कार्य की प्रशंसा भी करते थे ।
पात्रों को रंगमंच पर उतरने से पहले काफी परिश्रम करना पड़ता था और बाद में भी; क्योंकि एक ही नाटक भिन्न-भिन्न जगहों पर बार-बार खेला जाता था । वर्तमान समय में रंगमंच का स्थान चलचित्रों ने ले लिया । जहाँ एक स्थान पर बैठे लोग आराम से सिनेमा देख सकते हैं ।
अमेरिका के बाद भारत ही फिल्म बनाने वाला दूसरा बड़ा देश है । भारत की पहली मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ और बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ थी । श्वेत-श्याम फिल्मों का स्थान रंगीन फिल्मों ने ले लिया । अच्छी फिल्मों से सिनेमा घर भरे रहते हैं और टिकट चौगुने रेट पर ब्लैक में मिलते हैं ।
कुछ वर्षों बाद फिल्मों को टी॰वी॰ पर भी दिखाया जाता है । आज घर पर ही विडियों लगाकर मनचाही फिल्म देखी जा सकती है । दिल्ली में आज केबल टी॰वी॰ के तारों का जाल सा बिछा हुआ है जो प्रतिदिन दो या तीन फिल्में दिखाते हैं ।
प्राचीन काल में बड़े-बड़े लोग अपना मनोरंजन जानवरों का शिकार करके या दो जानवरों के बीच लड़ाई कराके करते थे । जैसे कि आज भी मुर्गे की लड़ाई कराके या देखकर लोग आनन्दित होते हैं । उस समय मनोरंजन के साधन कम थे ।
समाज के विकास के साथ-साथ मनोरंजन कार्यक्रमों की बाद सी आ गई है । आज का मानव व्यस्तता के कारण थक जाता है । वह मनोरंजन के लिए साधन ढूंढता है जिससे वह प्रसन्नता अनुभव कर सके । प्राचीन समय से ही मानव मनोरंजन प्रिय रहा है ।
भारत की नाट्य कला विश्व प्रसिद्ध है और उसका इतिहास नितान्त गौरवशाली रहा है । पहले संस्कृत के नाटक रंगमंच पर खेले जाते थे । धीरे-धीरे हिन्दी के नाटक भी लोकप्रिय हो गए । लोग नाटक देखने के लिए नाटकशालाओं में जाते थे । वहाँ प्रत्यक्ष ही नाटकों के पात्रों के कार्य की प्रशंसा भी करते थे ।
पात्रों को रंगमंच पर उतरने से पहले काफी परिश्रम करना पड़ता था और बाद में भी; क्योंकि एक ही नाटक भिन्न-भिन्न जगहों पर बार-बार खेला जाता था । वर्तमान समय में रंगमंच का स्थान चलचित्रों ने ले लिया । जहाँ एक स्थान पर बैठे लोग आराम से सिनेमा देख सकते हैं ।
अमेरिका के बाद भारत ही फिल्म बनाने वाला दूसरा बड़ा देश है । भारत की पहली मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ और बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ थी । श्वेत-श्याम फिल्मों का स्थान रंगीन फिल्मों ने ले लिया । अच्छी फिल्मों से सिनेमा घर भरे रहते हैं और टिकट चौगुने रेट पर ब्लैक में मिलते हैं ।
कुछ वर्षों बाद फिल्मों को टी॰वी॰ पर भी दिखाया जाता है । आज घर पर ही विडियों लगाकर मनचाही फिल्म देखी जा सकती है । दिल्ली में आज केबल टी॰वी॰ के तारों का जाल सा बिछा हुआ है जो प्रतिदिन दो या तीन फिल्में दिखाते हैं ।
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Answer:
pata nhi
Explanation:
baad me btayenge
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