अनाथ बालक की आत्मकथा
Answers
Explanation:
एक बड़े देश की रानी को बच्चों पर बड़ा प्रेम था। वह अनाथ बालकों को अपने खर्च से पालती-पोसती। उसने यह आदेश दे रखा था कि ‘कोई भी अनाथ बालक मिले, उसे तुरंत मेरे पास पहुँचाया जाय।’
एक दिन सिपहियों को रास्ते में एक छोटा बच्चा मिला। उन्होंने उसे लाकर रानी के हाथों में सौप दिया। रानी सहज स्नेह से उसे पालने लगी।
बच्चा जब पाँच वर्ष का हो गया, तब उसे पढ़ने के लिए गुरुजी के यहाँ भेजा। वह मन लगाकर पढ़ने लगा। बालक था बड़ा सुंदर और साथ ही अच्छे गुणोंवाला और बुद्धिमान भी। इससे रानी की ममता उस पर बढ़ने लगी और यह उसे अपनी पेट के बच्चे की तरह प्यार करने लगी। बच्चा भी उसे अपनी सगी माँ के समान ही समझता था।
एक दिन वह जब पाठशाला लौटा, तब वह बहुत उदास था। रानी ने उसे अपनी गोद मे बैठा लिया और प्यार से गालों पर हाथ फेरकर उदासी का कारण पूछा। बच्चा रो पड़ा। रानी ने अपने आँचल से उसके आँसू पोछकर और मुँह चूमकर बड़े स्नेह से कहा – ‘बेटा ! तू रो क्यों रहा है।’ बच्चे ने कहा – ‘माँ! आज दिनभर पाठशाला में मेरा रोते ही बीता है। मेरे गुरूजी मर गये। मेरी गुरुआनी जी और उनके बच्चे रो रहे थे। मैंने उनको रोते देखा। वे कह रहे थे की हमलोग एकदम गरीब है, हमारे पास खाने-पीने के लिए कुछ नही है और न कोई ऐसे प्यारे पड़ोसी ही है, जो हमारी सहायता करे। माँ! उनको रोते देखकर और उनकी बात सुनकर मुझे बड़ा ही दू:ख हो रहा है। तुझे उनकी सहायता के लिये कुछ-न-कुछ करना पड़ेगा।
अनाथ बालक की दयालुता
बालक की बाते सुनकर रानी का ह्रदय दया से भर आया। उसने तुरंत नोकर को पता लगाने भेजा और बच्चे का मुँह चूमकर कहा- ‘बेटा! नन्ही-सी उम्र मे तेरी ऐसी अच्छी बुद्धि और अच्छी भावना देखकर मुझे बड़ी ही प्रसञता हुई है। तेरी गुरुआनी जी और उनके बच्चो के लिये मै अवश्य प्रबन्ध करुँगी। तू चिंता मत कर।
रानीके भेजे हुए आदमीने लौटकर बताया की ‘बात बिलकुल सच्ची है। ‘रानीने बच्चो को पाँच सौ रुपये देकर गुरुआनी के पास भेजा और फिर कुछ ही दिनों मे, उनके कुटुम्ब का निर्वाह हो सके और लड़के पढ़ सके इसका पूरा प्रबंध
अनाथ बालक की आत्मकथा
यह एक अनाथ बच्चे की आत्मकथा है , कैसे वह बाहरी दुनिया और समाज की बाते सुन कर बड़ा होता है|
बच्चे को पता तक नहीं होता की वह कहाँ पर है , उसकी पहचान क्या है , कहाँ से आया हूँ | मेरे माता पिता कौन थे , मैं कैसे यहाँ आया | जाति-धर्म, वंश, गोत्र कुछ नहीं था। सिर्फ था एक नम्बर, जिसे मुझे बुलाते थे | छोटे से बड़े-बड़े होते यही देखा , ऐसे ही बड़ा हो गया| बड़े हो कर जब बाहरी दुनिया में कदम रखा तब से सुनाया | आप माता-पिता कौन है , आप कहाँ से आए हो , कौन से धर्म से हो | तब मैंने कहा मैं तो अनाथ हूँ , मैं एक इंसान हूँ , आप सब ऐसे क्यों पूछ रहे हो |
सब ताने ही दिए , सब मुझे ऐसे देखते थे की जैसे मैंने कोई अपराध किया हो | मुझे समझ नहीं आता , अनाथ होना क्या गुनाह है , इसमें मेरी क्या गलती है , यदि मेरे माता-पिता मुझे छोड़ कर चले गए और मेरे रिश्तेदार ने मुझे लेने से मना कर दिया | मेरी क्या गलती थी? आज मैं अनाथ ही हूँ पर मैं आज खुश हूँ मैं पढ़ा लिखा हूँ , आज अपना लक्ष्य पूरा कर चूका हूँ | बस एक बात का दुःख है की समाज कभी भी किसी को जीने नहीं देता है और लोग भी जीने नहीं देते सुनाते रहते है| मैंने अपने आप मैं हिम्मत रखी और आगे बढ़ता रहा|