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अनुवाद, संक्षेपण और संपादन
जवाहरलाल नेहरू ने तीन कालजयी कृतियों की रचना की विश्व इतिहास की झलकिया आत्मकथा और भारत की खोज। इनमें से पहला कृति को रचना यद्यपि इंदिरा गांधी (तब इंदिरा गांधी नेहरू) के लिए की गई थी परंतु उसमें भारत ही नहीं विश्व के युवा मानस को मानव का इतिहास समझने की दृष्टि मिली। उसी तरह जैसे उनकी आत्मकथा व्यक्ति विशेष की जीवन-कथा मात्र नहीं है, बल्कि उससे नए भारत की मानक बनावट का सुमन को अंतष्टि मिलती है।
भारत की खोज की प्रस्तावना में इंदिरा गांधी ने कहा है कि इस रचना में भारत के राष्ट्रीय चरित्र के स्रोतों की गहरी पड़ताल की गई है।" भारत की खोज की रचना 1944 में अप्रैल-सितंबर के बीच अहमदनगर के किले की जेल में हुई। यह पुस्तक 9 अगस्त 1942 से 28 मार्च 1945 के बीच के अपने साथिया और सहवदियों को समर्पित की गई हैं। तिथिया का यह चुनाव संयोग भर नहीं है बल्कि उस दौर की घटनाओं के प्रति नेहरू
के गहरे सरोकार की ओर इशारा करता है। पुस्तक की भूमिका में नेहरू ने कारावास के अपने इन साथियों को बहुत सम्मान से स्मरण किया है। कारावास के जीवन की कठिनाइयों और कष्टों के बावजूद उन्होंने असामान्य रूप से योग्य और सुसंस्कृत इन
व्यक्तियों के साहचर्य को अपना सौभाग्य माना। इस संदर्भ में नेहरू न अहमदनगर के कारावास में अपने ग्यारह साथियों की चर्चा की है। इन लोगों
का साथ उन्हें इस मायने में बहुत दिलचस्प लगता था कि वे केवल राजनीतिक माहोल के ही नहीं, भारतीय विद्वत्ता के प्राचीन और नवीन भारत क तथा तत्कालीन भारतीय जीवन के सभी पक्षों के प्रतिनिधि थे। उनका संबंध भारत की लगभग सभी जीवित और प्राचीन भाषाओं से था और उनकी विद्वत्ता का स्तर बहुत ऊँचा था। प्राचीन भाषाओं में संस्कृत और पाली के साथ अरबी एवं फ़ारसी और आधुनिक भाषाओं में हिंदी, उर्दू, बंगाली,गुजराती, मराठी, तेलुगु, सिंधी एवं उड़िया शामिल थी।नेहरू ने लिखा है “मेरे सामने ग्रहण करने के लिए यह तमाम दौलत थी और एकमात्र बाधा उससे लाभान्वित होने की परी सीमित क्षमता थी।"