answer it fast in hindi
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सुनील: "नमस्ते मित्र, कैसे हो?"
सुशील: "अरे क्या बतायें मित्र, आजकल ईमानदारी का जमाना नहीं है।"
सुनील: "क्यों, क्या हुआ?"
सुशील: "तुम तो जानते हो कि मेरा बेटा पढ़ने में कितना होशियार है।"
सुनील: "हाँ, ये तो सच है।"
सुशील: "उसने इतनी मेहनत करके डिग्री प्राप्त करी है, पर कोई उसे नौकरी देने को तैयार नहीं है।"
सुनील: "क्यों?"
सुशील: "सब जगह सिफारिश की आवश्यकता है, यदि कोई बड़ा वी.आई.पी उसकी सिफारिश करेगा तभी उसे नौकरी मिल सकती हैं।"
सुनील: "ये तो भ्रष्टाचार है।"
सुशील: "इसीलिए तो कह रहा हूँ कि आजकल ईमानदारी से काम नहीं चलता है।"
सुशील: "अरे क्या बतायें मित्र, आजकल ईमानदारी का जमाना नहीं है।"
सुनील: "क्यों, क्या हुआ?"
सुशील: "तुम तो जानते हो कि मेरा बेटा पढ़ने में कितना होशियार है।"
सुनील: "हाँ, ये तो सच है।"
सुशील: "उसने इतनी मेहनत करके डिग्री प्राप्त करी है, पर कोई उसे नौकरी देने को तैयार नहीं है।"
सुनील: "क्यों?"
सुशील: "सब जगह सिफारिश की आवश्यकता है, यदि कोई बड़ा वी.आई.पी उसकी सिफारिश करेगा तभी उसे नौकरी मिल सकती हैं।"
सुनील: "ये तो भ्रष्टाचार है।"
सुशील: "इसीलिए तो कह रहा हूँ कि आजकल ईमानदारी से काम नहीं चलता है।"
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ध्रुव - नमस्ते मित्र, आज कैसे आना हुआ?
मोहन - बाज़ार निकला था कुछ घर का सामान लाने। पर तुम कैसे को मित्र?
ध्रुव - मैं तो ठीक हूं पर ज़रा बड़ते भ्रष्टाचार के बारे में सोचकर परेशान हो रहा हूं।
मोहन - सत्य है, प्रगतिशील देश में भ्रष्टाचार एक श्राप के समान होता है।
ध्रुव - हाँ पर अगर विचार करें तो हम सब ज़रूर इस धुविधा से निकलकर विकास कर सकते हैं।
मोहन - हाँ बिलकुल, चलो अब बाज़ार जाना है। इस पर और बात अवश्य करेंगे।
ध्रुव - चलो नमस्ते।
मोहन - नमस्कार।
मोहन - बाज़ार निकला था कुछ घर का सामान लाने। पर तुम कैसे को मित्र?
ध्रुव - मैं तो ठीक हूं पर ज़रा बड़ते भ्रष्टाचार के बारे में सोचकर परेशान हो रहा हूं।
मोहन - सत्य है, प्रगतिशील देश में भ्रष्टाचार एक श्राप के समान होता है।
ध्रुव - हाँ पर अगर विचार करें तो हम सब ज़रूर इस धुविधा से निकलकर विकास कर सकते हैं।
मोहन - हाँ बिलकुल, चलो अब बाज़ार जाना है। इस पर और बात अवश्य करेंगे।
ध्रुव - चलो नमस्ते।
मोहन - नमस्कार।
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