Hindi, asked by krazykrotux75, 6 months ago

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कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है । यह केवल नीति और सदाचार का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है । किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-रात अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाले कंधों के समान होगी, जो उसे निरंतर उन्नति की ओर उठाती जाएगी ।


इंग्लैंड के एक विद्वान को युवावस्था में राज-दरबारियों में जगह नहीं मिली । इस पर जिंदगी भर वह अपने भाग्य को सराहता रहा । बहुत-से लोग तो इसे अपना बड़ा भारी दुर्भाग्य समझते, पर वह अच्छी तरह जानता था कि वहाँ वह बुरे लोगों की संगति में पड़ता जो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक बनते । बहुत-से लोग ऐसे होते हैं, जिनके घड़ी भर के साथ से भी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, क्योंकि उनके ही बीच में ऐसी-ऐसी बातें कही जाती हैं जो कानों में न पड़नी चाहिए, चित्त पर ऐसे प्रभाव पड़ते हैं, जिनसे उसकी पवित्रता का नाश होता है । बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है । बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं । इस बात को प्रायः सभी लोग जानते हैं कि भद्दे व फूहड़ गीत जितनी जल्दी ध्यान पर चढ़ते हैं, उतनी जल्दी कोई गंभीर या अच्छी बात नहीं ।


एक बार एक मित्र ने मुझसे कहा कि उसे लड़कपन में कहीं से बुरी कहावत सुनी थी, जिसका ध्यान वह लाख चेष्टा करता है कि न आए, पर बार-बार आता है । जिन भावनाओं को हम दूर रखना चाहते हैं, जिन बातों को हम याद करना नहीं चाहते, वे बार-बार हृदय में उठती हैं और बेधती हैं । अतः तुम पूरी चौकसी रखो, ऐसे लोगों को साथी न बनाओ जो अश्लील, अपवित्र और फूहड़ बातों से तुम्हें हँसाना चाहें । सावधान रहो । जब एक बार मनुष्य अपना पैर कीचड़ में डाल देता है, तब फिर यह नहीं देखता कि वह कहाँ और कैसी जगह पैर रखता है । धीरे-धीरे उन बुरी बातों में अभ्यस्त होते-होते तुम्हारी घृणा कम हो जाएगी ।


फिर तुम्हें उनसे चिढ़ न मालूम होगी, क्योंकि तुम यह सोचने लगोगे कि चिढ़ने की बात ही क्या है? तुम्हारा विवेक कुंठित हो जाएगा और तुम्हें भले-बुरे की पहचान न रह जाएगी । अंत में होते-होते तुम भी बुराई के भक्त बन जाओगे । अतः हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगति से बचो ।


i) कुसंगति की तुलना किससे की गई है और क्यों?


ii) राज-दरबारियों के बीच जगह न मिलने पर भी विद्वान दुखी क्यों नहीं हुआ?


iii) बुरी बातें चित्त में जल्दी जगह बनाती हैं । इसके लिए लेखक ने क्या दृष्टांत दिया है?


iv) लेखक किस तरह के साथियों से दूर रहने की सलाह देता है और क्यों?


v) एक बार बुराइयों में पैर पड़ने के बाद व्यक्ति उन्हें क्यों छोड़ नहीं पाता है?

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Answered by shishir303
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i) कुसंगति की तुलना किससे की गई है और क्यों?

➲ कुसंगति की तुलना पैरों में बंधी चक्की से की गई है, जो दिन-रात अवनति के गड्ढे में ही गिरायेगी।

ii) राज-दरबारियों के बीच जगह न मिलने पर भी विद्वान दुखी क्यों नहीं हुआ?

➲ राज दरबार में स्थान नहीं मिलने पर व्यापारी विद्वान दुखी इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि इससे वह राज दरबार के बुरे लोगों की संगत में पड़ने से बच गया, यदि इन लोगों की कुसंगति में पड़ जाता, तो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधा उत्पन्न होती।

iii) बुरी बातें चित्त में जल्दी जगह बनाती हैं । इसके लिए लेखक ने क्या दृष्टांत दिया है?

➲ बुरी बातें चित्त में जगह बनाती हैं, इसके लिए लेखक ने उदाहरण देते हुए कहा कि एक बार लेखक के मित्र ने उससे कहा था कि लड़कपन में उसने कहीं से एक बुरी कहावत सुनी थी और वह बुरी कहावत लाख चेष्टा करने पर भी भुला नहीं पाता और उसे वह बार-बार की याद आ जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि बुरी बातें चित्त में जल्दी जगह बनाते हैं।  

iv) लेखक किस तरह के साथियों से दूर रहने की सलाह देता है और क्यों?

➲ लेखक ने उन साथियों को दूर रहने से दूर रहने की सलाह दी है जो अश्लील और फूहड़ बातें करते हों, बुरी बातें करते हों। ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहना चाहिए।

v) एक बार बुराइयों में पैर पड़ने के बाद व्यक्ति उन्हें क्यों छोड़ नहीं पाता है?

➲ एक बार बुराई में पैर पड़ने के बाद व्यक्ति उन्हें इसलिए नहीं छोड़ पाता क्योंकि बुराई एक दलदल अर्थात कीचड़ के समान होता है, जिसमें पैर पड़ जाने पर व्यक्ति उसमें धंसता ही चला जाता है।

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