Hindi, asked by salmazk123, 9 months ago

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Answered by princedileep17078399
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अठारह पुराणों में महर्षि व्यास के उपदेशों का सार यही है कि परोपकार से पुण्य प्राप्त होता है और दूसरे को सताने से पाप लगता है । ‘परोपकार’ दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘पर’ और ‘उपकार’ अर्थात्- ‘दूसरों की भलाई करना’ ।

परोपकार मनुष्य का कर्तव्य है । परोपकारी व्यक्ति समाज की उन्नति में सहायक होता है । जिस समाज में ऐसे व्यक्तियों की बहुलता रहती है, वह समाज दुःख-दाद्धिय के दलदल से सदा के लिए मुक्त हो जाता है । परोपकार एक उच्च कोटि की भावना है । इसकी उत्पत्ति करुणा और प्रेम से होती है ।

जिस मनुष्य का हृदय जितना विशाल होता है, वह उतना ही दूसरों से अपना संबंध स्थापित कर सकता हें । वस्तुत: परोपकार मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा गुण है । अपने लिए तो कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी भी जी लेते हैं, कुत्ते भी अपना पेट भर लेते हैं; किंतु वही मनुष्य ‘मनुष्य’ है, जो दूसरों के लिए जीता है । मैथिलीशरण गुप्तजी ने लिखा है:

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