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आज के बदलते परिवेश मे संवेदनशील भावनाएँ समाप्त होती जा रही हैं। अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले पाठ के आधार पर बताइए।
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प्रतिदिन आबादी बढ़ रही है और बिल्डर नई-नई इमरातें बनाने के लिए वन जंगल तो खतम कर ही रहे हैं। साथ ही समुद्र के किनारे इमारतें बनाने के कारण समुद्र को पीछे किया जाता है।
लेखक के अनुसार अब जीवन डिब्बे जैसे घरों में सिमटने लगा है। पहले बड़े-बड़े घर दालान आँगन होते थे, सब मिलजुल कर रहते थे, अब आत्मकेन्द्रित हो गए हैं। इसलिए लोग छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिमटने लगे हैं।
पर्यावरण असंतुलित होने का सबसे बड़ा कारण आबादी का बढ़ना है जिससे आवासीय स्थलों को बढ़ाने के लिए वन, जंगल यहाँ तक कि समुद्रस्थलों को भी छोटा किया जा रहा है। पशुपक्षियों के लिए स्थान नहीं है। इन सब कारणों से प्राकृतिक का सतुंलन बिगड़ गया है और प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ती जा रही हैं। कहीं भूकंप, कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कभी गर्मी, कभी तेज़ वर्षा इन के कारण कई बिमारियाँ हो रही हैं। इस तरह पर्यावरण के असंतुलन का जन जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है।