Anucched lekhan on the topic down
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भारत में संवैधानिक रूप से बाईस भाषाओं को मान्यता दी गई है परन्तु हिंदी ऐसी भाषा है जो संपूर्ण देश को आपस में जोड़ने में सहयोग देती है । स्वतंत्रता से पूर्व भी भारतीयों को हिंदी ने जोड़े रखा । सभी स्वतंत्रता सेनानियों जैसे महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू आदि ने हिंदी को सशक्त भाषा के रूप में स्वीकार किया ।
भारतेंदु हरिशचंद्र द्वारा कही गई निम्नलिखित पंक्तियां हमारे मन में हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति सम्मान जगाती हैं । निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को शूल । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् संपूर्ण भारत को एक सूत्र में जोड़े रखने के लिए एक सशक्त भाषा की आवश्यकता महसूस हुई ।
अंग्रेजी भाषा के समर्थकों ने यह चाहा कि अंग्रेजी ही भारत की राष्ट्रभाषा बनी रहे । परन्तु विचार विमर्श के पश्चात् इस निर्णय पर पहुंचे कि अँग्रेजी कैवल पढ़े-लिखे समाज द्वारा ही प्रयोग में लायी जाती थी, इसलिए अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जा सकता था । दूसरा कारण यह भी था कि भारतीय दो सौ से भी अधिक वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा सताए गए, वे उन अंग्रेजों की भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे ।
अंततः 1 सितम्बर, 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया । इसलिए प्रतिवर्ष 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया. जाता है । भारतवर्ष में हिंदी से संबंधित अनेक- प्रकार की प्रतियोगिताएं, कवि सम्मेलन करवाए जाते हैं । आजादी के बाद भी भारत देश में अंग्रेजी फलती फूलती रही परन्तु देशवासियों को यह मंजूर न था । हिंदी को जो अधिकार मिलना चाहिए था वह उसकी अधिकारिणी नहीं बन पायी । आज भी अंग्रेजी बोलने वाले को ही मान्यता दी जाती है ।
हिंदी बोलते समय लज्जा का अनुभव करते हैं । दूसरों की भाषा अंग्रेजी बोलते समय गर्व महसूस करते हैं । आज हिंदी जिस हालत में है उसके जिम्मेदार भी. हम है । सरकार, नेतागण एवं भारतवासी सभी इसके जिम्मेदार है. । दूसरे देशों के नेता कभी भी अपनी राष्ट्रभाषा को छोड्कर किसी अन्य भाषा में भाषण नहीं देते और उनकी राष्ट्रभाषा जो भी है उस पर गर्व महसूस करते हैं । अपनी राष्ट्रभाषा जो भी है उस पर गर्व महसूस करते हैं ।
अपनी राष्ट्रभाषा में ही बातचीत करते रु परन्तु भारतीय हिंदी में बात’ करने से शर्म महसूस करते हैं । जो अंग्रेजी नहीं जानता उसे. हीन दृष्टि से देखा जाता है । सबसे पहले हमें अपनी राष्ट्रभाषा को सम्मान देना हमारा कर्त्तव्य है । उसके पश्चात् मय भाषाओं को सीखने में कोई हर्ज नहीं है । सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओँ में हिंदी का तीसरा स्थान है । हिंदी, फीजी, सूरी नाम, ट्रिनीडाड, मलेशिया, मॉरीशस आदि देशों में काफी लोगों द्वारा बोली एवं समझी जाती है । हिंदी एकमात्र ही ऐसी भाषा है जो जिस प्रकार बोली जाती है उसी. प्रकार लिखी भी जाती है ।
हिंदी भाषा हमारे राष्ट्र की एकता, सम्मान तथा विकास का आधार हैँ । जिस प्रकार सभी व्यक्ति अपने देश की राष्ट्रभाषा का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान करना चाहिए ।
हिंदी वह भाषा जो किसी भी देश के अधिकतर निवासियों द्वारा बोली एवं समझी जाती है, वह राष्ट्र भाषा कहलाती है । प्रत्येक राष्ट्र की कोई न कोई राष्ट्रभाषा अवश्य होती है । हमारे देश भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है जो कि भारत के अधिकतर राज्यों के लोगों द्वारा बोली एवं समझी जाती है । देश की राष्ट्र भाषा का सम्मान करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य होता है ।
भारत में संवैधानिक रूप से बाईस भाषाओं को मान्यता दी गई है परन्तु हिंदी ऐसी भाषा है जो संपूर्ण देश को आपस में जोड़ने में सहयोग देती है । स्वतंत्रता से पूर्व भी भारतीयों को हिंदी ने जोड़े रखा । सभी स्वतंत्रता सेनानियों जैसे महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू आदि ने हिंदी को सशक्त भाषा के रूप में स्वीकार किया ।
भारतेंदु हरिशचंद्र द्वारा कही गई निम्नलिखित पंक्तियां हमारे मन में हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति सम्मान जगाती हैं । निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को शूल । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् संपूर्ण भारत को एक सूत्र में जोड़े रखने के लिए एक सशक्त भाषा की आवश्यकता महसूस हुई ।
अंग्रेजी भाषा के समर्थकों ने यह चाहा कि अंग्रेजी ही भारत की राष्ट्रभाषा बनी रहे । परन्तु विचार विमर्श के पश्चात् इस निर्णय पर पहुंचे कि अँग्रेजी कैवल पढ़े-लिखे समाज द्वारा ही प्रयोग में लायी जाती थी, इसलिए अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जा सकता था । दूसरा कारण यह भी था कि भारतीय दो सौ से भी अधिक वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा सताए गए, वे उन अंग्रेजों की भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे ।
अंततः 1 सितम्बर, 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया । इसलिए प्रतिवर्ष 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया. जाता है । भारतवर्ष में हिंदी से संबंधित अनेक- प्रकार की प्रतियोगिताएं, कवि सम्मेलन करवाए जाते हैं । आजादी के बाद भी भारत देश में अंग्रेजी फलती फूलती रही परन्तु देशवासियों को यह मंजूर न था । हिंदी को जो अधिकार मिलना चाहिए था वह उसकी अधिकारिणी नहीं बन पायी । आज भी अंग्रेजी बोलने वाले को ही मान्यता दी जाती है ।
हिंदी बोलते समय लज्जा का अनुभव करते हैं । दूसरों की भाषा अंग्रेजी बोलते समय गर्व महसूस करते हैं । आज हिंदी जिस हालत में है उसके जिम्मेदार भी. हम है । सरकार, नेतागण एवं भारतवासी सभी इसके जिम्मेदार है. । दूसरे देशों के नेता कभी भी अपनी राष्ट्रभाषा को छोड्कर किसी अन्य भाषा में भाषण नहीं देते और उनकी राष्ट्रभाषा जो भी है उस पर गर्व महसूस करते हैं । अपनी राष्ट्रभाषा जो भी है उस पर गर्व महसूस करते हैं ।
अपनी राष्ट्रभाषा में ही बातचीत करते रु परन्तु भारतीय हिंदी में बात’ करने से शर्म महसूस करते हैं । जो अंग्रेजी नहीं जानता उसे. हीन दृष्टि से देखा जाता है । सबसे पहले हमें अपनी राष्ट्रभाषा को सम्मान देना हमारा कर्त्तव्य है । उसके पश्चात् मय भाषाओं को सीखने में कोई हर्ज नहीं है । सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओँ में हिंदी का तीसरा स्थान है । हिंदी, फीजी, सूरी नाम, ट्रिनीडाड, मलेशिया, मॉरीशस आदि देशों में काफी लोगों द्वारा बोली एवं समझी जाती है । हिंदी एकमात्र ही ऐसी भाषा है जो जिस प्रकार बोली जाती है उसी. प्रकार लिखी भी जाती है ।
हिंदी भाषा हमारे राष्ट्र की एकता, सम्मान तथा विकास का आधार हैँ । जिस प्रकार सभी व्यक्ति अपने देश की राष्ट्रभाषा का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान करना चाहिए ।