Anuched lekhan - jeevan rakshak aspatal mein chalta mrityu ka khel
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आज के समय में अस्पताल जीवन रक्षक नहीं मृत्यु का खेल बनता जा रहा है | यह बिलकुल सत्य है | देखा जाए सरकारी अस्पतालों में भ्रष्टाचार , और सिफारिश बहुत चलती है ,आम आदमी की बारी ही नहीं आती | गरीबों को पूछते तक नहीं है और ऐसे उन्हें अंत में मृत्यु मिलती है | अस्पताल एक व्यापार सा बनता जा रहा है |
बात करें तो निजी अस्पताल में तो पैसों का खेल जिसके पास पैसे है उसके पास जीवन है जिसके पास पैसे नहीं उसे मृत्यु मिलती है | अस्पताल में डॉक्टर लोगों से पैसा बनाने के लिये मरीज को जरूरत से ज्यादा दिनों तक भर्ती करके रखते हैं
जब किसी मरीज की मृत्यु हो जाती है तो भी उसके परिजनों को नहीं बताते और बिल बढ़ाने के लिये डेड बाडी को मशीन पर लगाये रखते हैं | जो टेस्ट जरूरी नहीं होगा | वह भी कर लेते है,पैसा बनाने के लिए मरीज के परिजनों के सामने ऐसी स्थिति बनाते हैं कि वह दबाव में आ जाता है, मजबूरी में उसे जो डाक्टर कहते हैं वह करना ही पड़ता है|
यही खेल हो गया अब निजी और सरकारी अस्पतालों का सबकी भावनाओं के साथ खेलना |
जीवन रक्षक अस्पताल में चलता मृत्यु का खेल
अस्पताल को जीवन रक्षक माना गया है यहां बड़े-बड़े डॉक्टर होते हैं जो रोगियों का इलाज कर उन्हें ठीक करते हैं परंतु आजकल यह अस्पताल किसी व्यक्ति के लिए पैसे कमाने का एक जरिया बन गया है व्यक्ति पैसे की लालच में बिना किसी डिग्री के ही अपने द्वारा बनाईं गई बड़े-बड़े मंजिलों के अंदर बैठकर दूसरों की मृत्यु पैसों की कीमत पर खरीदते हैं व्यक्ति चाहे बचे या मर जाए, इसमें डॉक्टर की गलती हो या ना हो, वहां उचित सुविधा हो या ना हो परंतु मंजिलों के बाहर एक बड़े पोस्टर में डॉक्टर की मोटी रकम लिखी हुई जरूर मिलती है।
यही हाल सरकारी अस्पतालों का भी है वहां डॉक्टर कम परंतु रोगी अत्यधिक मिलते हैं। सुविधाएं सिर्फ पोस्टरों में दिखाई देती है। हकीकत तो यह है डॉक्टर अपनी हाजिरी बनाने आते हैं। कभी-कभी साहब के डर से आधे या 1 घंटे बैठे भी तो आपने प्राइवेट हॉस्पिटल की बड़ाई करना ना भूलते । प्रशंसा भी ऐसी जैसे झूठ का पुलिंदा हो।