India Languages, asked by ramsanjeevan2477, 1 year ago

Anuched lekhan on ab pachta ke hot kya jab chidiya chug gayi khet

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Answered by Anonymous
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​यह कहावत बड़ी प्रसिद्ध है कि चिड़िया चुग गई खेत, तो पछताने से होत क्या। यह कहावत आलसी और भाग्य के भरोसे रहने वाले लोगों के लिए चरितार्थ होती है। वे लोग जीवन में अपने हर दुर्भाग्य को पूर्व जन्म का कर्म मानकर रोते रहते हैं। जो लोग दूसरों के भरोसे रहकर अपना कार्य करते हैं, वह भी समय आने पर पछताते हैं। मनुष्य को चाहिए कि अपने पुरूषार्थ के अतिरिक्त किसी अन्य का सहारा न ले। जो मनुष्य अपने भुजबल और ईश्वर पर विश्वास कर कार्य करते हैं कठिनाई उनके आगे नतमस्तक हो जाती है। ईश्वर ने मनुष्य को दो हाथ दिए हैं, जिनके सहारे मनुष्य चाहे, तो चट्टान को अपने रास्ते से हटाने का पौरुष रखता है। जापान सबसे छोटा द्विप है परन्तु उसने जो सफलता पाई है वह अद्भुत है। आज जापान हर क्षेत्र में अग्रणीय है। ऐसा वहाँ के लोगों के कठोर परिश्रम के कारण ही संभव हो पाया है। यदि वह अपनी प्रगति और विकास के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहता, तो वह आज इतना समृद्धशाली नहीं होता। अतः चाहिए कि भाग्य और आलस को त्याग कर मेहनत करें। वरना लोगों द्वारा सदैव यही कहा जाएगा चिड़िया चुग गई खेत, तो पछताने से होत क्या।

आशा करता हूँ मेरा उत्तर आपकी मदद करे।
Answered by muskan8566
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Explanation:

लता स्कूल से आकर उछलती हुई दादाजी के पास गई। दादाजी ने पूछ। लिया-“लता बेटे, आज तुम बहुत खुश दिखाई दे रही हो। क्या बात है?” लता बोली-“दादाजी, मैं पास हो गई। अपनी क्लास में मेरा पहला नंबर है। लेकिन दादाजी हमारी क्लास में दो बच्चे फेल हो गए। वे रोने लगे तो मैडम ने उनसे कहा-‘अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत’। दादाजी, मैडम ने ऐसा क्यों कहा?”दादाजी ने कहा-“बेटा, जब कोई व्यक्ति समय पर अपना काम नहीं करता और उसे नुकसान हो जाता है तब ऐसा ही कहा जाता है। इसे ठीक से समझाने के लिए एक कहानी सुनाता हूँ।” कहते हुए दादाजी ने अमर को भी बुला लिया और बोले-एक किसान था। वह बहुत मेहनती था। लेकिन उसका बेटा बहत आलसी था। किसान ने उसे अपने खेतों में खड़ी फसल की रखवाली का काम सौंप रखा था। लेकिन वह आलसी खेत में जाकर दिन-भर सोता रहता और सैकड़ों चिड़ियाँ उसके खेत में खड़ी फसल के दानों को खाती रहतीं। धीरे-धीरे दिन बीत गए और कुछ ही दिनों में बेचारे किसान की सारी फसल चिड़ियाँ चट कर गईं। जब किसान को इस बात का पता चला तो उसने अपना माथा पीट लिया। उसने अपने आलसी बेटे को बहुत डॉटा। किसान दुखी होकर रोते हुए बोला-“मुझे मेरे आलसी बेटे ने बरबाद कर दिया। काम का न काज का, दुश्मन अनाज का!’ यह देखकर उसका बेटा भी जोर-जोर से रोने लगा। वह रोते-रोते कह रहा था-‘मेरी वजह से सारी फसल चौपट हो गई। सारी मेहनत बेकार हो गई। पिताजी, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे माफ कर दीजिए। इस तरह दोनों बाप-बेटे अपने उजड़े हुए खेत को देख-देखकर रोने-बिलखने लगे।

“तभी राम नाम का जाप करते हुए एक साधु उधर आए। साधु ने किसान और उसके बेटे को रोते-बिलखते देखा तो रुक गए। उन्होंने किसान से रोने-धोने का कारण पूछा। किसान ने रोते हुए अपने आलसी बेटे के कारण नष्ट हो गई फसल के बारे में सारी बात बता दी। तब किसान का बेटा साधु के पैरों में गिर पड़ा और माफी माँगने लगा-‘मुझसे गलती हो गई बाबा! मेरी वजह से सारी फसल बरबाद हो गई। साधु ने किसान के बेटे को उठाया और बोले-‘बेटा, अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत! चलो उठो, भविष्य में अपना काम समय पर करना। याद रखो, मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है। ऐसा कहते हुए साधु ने किसान के बेटे के सिर पर हाथ फेरा। ” दादाजी ने कहानी समाप्त की।

कहानी सुनकर अमर बोला-“दादाजी, इसका मतलब है कि हमें अपना काम समय पर कर लेना चाहिए ताकि बाद में हमें पछताना न पड़े।” दादाजी बोले-“हाँ बेटा, इससे हमें यह सीख मिलती है कि आज का काम कल पर कभी नहीं छोड़ना चाहिए। किसी ने ठीक ही कहा है—

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