anuched lekhan on mera priya granth
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मानव का लक्ष्य आनन्द-प्राप्ति है । इसी आनन्द के लिए वह तरह-तरह के साधन अपनाता है । इसके लिए वह फिल्म देखता है, गीत सुनता है, तरह-तरह के खेल खेलता है । लेकिन यह सब क्षणिक साधन हैं ।
पुस्तकों से ही स्थाई आनन्द प्राप्त होता है । मेरी पढ़ने में रूचि हैं और मेरी प्रिय पुस्तक है- महाभारत । महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास हैं । इस का मूल ग्रंथ संस्कृत में सुरक्षित है । महाभारत का विकास तीन चरणों हुआ । प्रथम अवस्था में इसका नाम ‘जय’ था और इसमें आठ हजार आठ सौ श्लोक थे । दूसरी अवस्था में श्लोकों की संख्या एक लाख हो गई और वह ‘महाभारत’ नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
विश्व की पहली ऐसी पुस्तक है जिसका नामकरण तीन बार हुआ और वह समाज में फिर भी लोकप्रिय हुई । महाभारत में एक लाख श्लोक और अठारह पर्व हैं । महाभारत की मुख्य कथा कुरुक्षेत्र के महासंग्राम की है जो हस्तिनापुर के सिंहासन के लिए कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया ।
कथा इस प्रकार है :- धृतराष्ट्र और पाण्डु दो भाई थे । उनकी राजधानी हस्तिनापुर थी । धृतराष्ट्र अन्धे थे, इसलिए राजा नहीं बन सके । पाण्डु को राजा बनाया गया । धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन और दुश्शासन थे । पाण्डु के पाँच पुत्र- अर्जुन, नकुल, सहदेव, भीम और युधिष्ठिर थे । ये पांचों भाई पाण्डवों के नाम से प्रसिद्ध थे ।
युधिष्ठिर बड़ा होने के कारण राज्य का उत्तराधिकारी था । दुर्योधन ने अपने मामा शकुनि के साथ मिलकर पाण्डवों को मारने के तरह-तरह के उपाय किए, लेकिन सब असफल रहे । कौरवों ने पाण्डवों को जुए के लिए आमंत्रित किया । पाण्डव द्रौपदी सहित राज्य हार बैठे । उन्हें बारह वर्षों का वनवास और एक वर्ष का अज्ञात वर्ष मिला ।
तेरह वर्ष पश्चात् कौरवों ने राज्य देने से इन्कार कर दिया और युद्ध छिड़ गया । अपने स्वजनों को युद्ध में देखकर अर्जुन विमुख हो गया । श्रीकृष्ण ने उसे आत्मा की अमरता का उपदेश दिया जो ‘गीता’ के रूप में निबद्ध है । जिसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं । यह युद्ध 18 दिन तक चला जिसमें कौरवों की हार हुई ।
महाभारत अनेक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । इसमें राजनैतिक कूटनीति, देश के आचार-विचार, तीर्थ, त्योहार, व्रत, पर्व, धर्म की चर्चा, स्त्रियों की दशा, समाज में उनका स्थान, विवाह, शिक्षा, त्याग, राजधर्म का उपदेश, मित्रता, शत्रुता आदि सभी का विशद वर्णन और विवेचन है ।
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महाभारत एक व्यक्ति की रचना नहीं है । इसका विकास सदियों में हुआ है । इसमें कुछ छूट न जाए इसलिए कलेवर दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया । इसलिए महाभारत में इतना कुछ लिखा गया कि उसके विषय वह कहावत प्रसिद्ध हो गई कि जो इसमें है वही अन्य जगहों पर भी है, जो इसमें नहीं वह कहीं भी नहीं- ”यदि हास्ति तदन्यत्र, यत्रेहास्ति न तत क्वचित ।”
महाभारत में भारत की संस्कृति सुरक्षित है । यह भारतीयों की आचार संहिता है । कौरवों पांडवों के संघर्ष की कथा न होकर भारतीयों का धर्मशास्त्र है । जिसे पाँचवाँ वेद कहकर ऐसे सिंहासन पर बैठाया गया जहाँ आज तक कोई ग्रन्थ आरुढ़ नहीं हुआ ।
जितनी बार इसे पढा जाए उतना ही नवीन लगता है । अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है और हो रहा है । दूरदर्शन पर ‘महाभारत’ सीरियल दिखाया गया, जिसकी सर्वत्र प्रंशसा हुई । प्राचीन काल से आज तक यह अपनी श्रेष्ठता की कथा स्वयं कहता चलता है, इसलिए यह मेरा प्रिय ग्रन्थ है ।
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