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किसी भी देश या राष्ट्र का भविष्य वहाँ के छात्रों पर ही निर्भर करता है । यदि वहाँ के छात्र सच्चरित्र, विनीत, सुशील, सहिष्णु कर्तव्यनिष्ठ एवं अनुशासन-प्रिय होंगे तो राष्ट्र अवश्य सुखी, संपन्न, समुन्नत और प्रगतिशील होगा; क्योंकि आज के छात्र कल के कर्णधार होते हैं ।
नन्हे-मुन्ने कोमल शिशुओं की सुकुमार भावनाओं में देश का भविष्य निहित रहता है, किंतु खेद है कि आज का छात्र-समुदाय एक विपरीत दिशा की ओर जा रहा है । उसमें स्वेच्छाचारिता, उद्दंडता, अनुशासनहीनता तथा धृष्टता चरम सीमा तक पहुँच गई है ।
गुरुजनों से अशिष्टता करना, सभा-सम्मेलनों में उत्पात मचाना, राह चलती छात्राओं को छेड़ना, निराधार और अनावश्यक हड़ताल व अनशन आदि करना तथा भावावेश में आकर तोड़-फोड़ करना उनका स्वभाव सा वन गया है । एक समय था जब छात्र देश की अमूल्य निधि और अनुपम विभूति समझे जाते थे । वे अपने कार्यों से राष्ट्र तथा समाज का मस्तक सदा उन्नत रखने की चेष्टा करते
थे । गुरुजनों से शिक्षा प्राप्त कर वे राष्ट्र के ऐसे आदर्श नागरिक बनते थे, जिनकी प्रशंसा शासक वर्ग मुका कंठ से करते थे । किंतु आज उसी देश के छात्र अनुशासनहीन होकर अपना ही नहीं बल्कि अपने देश का भविष्य बिगाड़ रहै हैं ।
छात्रावस्था में अनुशासन अति महत्त्वपूर्ण है । छात्रावस्था अबोधावस्था होती है । उसमें न तो बुद्धि परिष्कृत होती है और न विचार । ऐसी स्थिति में छात्र के माता-पिता तथा उसके गुरुजन उसकी बुद्धि का परिष्कार करके उसमें विवेक-शक्ति जाग्रत् करते हैं और उसे कर्तव्य पालन का पाठ पढ़ाते हैं । वे उससे अपनी आज्ञाओं का पालन कराते हैं और उसे अनुशासन में रहने की प्रेरणा देते हैं ।
अनुशासन छात्र-जीवन का प्राण है । अनुशासनहीन छात्र न तो अपने देश का सभ्य नागरिक बन सकता है और न अपने व्यक्तिगत जीवन में ही सफल हो सकता है । यों तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन की परम आवश्यकता है, परंतु सफल छात्र-जीवन के लिए तो यह एकमात्र कुंजी है ।