Hindi, asked by moni6147, 1 year ago

anuched on dahej samasya

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Answered by pinahoneypalak
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भारतीय संस्कृति में विवाह को एक आध्यात्मिक कार्य, आत्माओं का मिलन, पवित्र संस्कार और धर्म समाज का आवश्यक अंग माना जाता है । ऐसा भी भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों सभ्यता-संस्कृतियों में माना और कहा जाता है कि ‘ विवाह स्वर्ग में तय किये जाते हैं ‘ अर्थात दो व्यक्तियों (स्त्री-पुरुष) का पारस्परिक विवाह सम्बन्ध पहले से ही निश्चय एवं निर्धारित हुआ करता है ।

हमारे विचार में पहले-पहल जब विवाह नामक संस्था का आरम्भ हुआ होगा, तो मूल भावना सम्बन्धों को स्वस्थ स्वरूप देने और जीवन तथा समाज को अनुशासन देने की रही होगी, क्योंकि तबका जीवन पवित्र एवं आदर्श हुआ करता था, इस कारण विवाह कार्य का सम्बन्ध धर्म से भी जोड़ दिया गया होगा ताकि इनके डर से विवाहित जोड़े और भी अधिक अनुशासन में नियम से रह सकें ।

परन्तु विवाह के साथ दान-दक्षिण और लेन-देन की प्रथा यानि दहेज प्रथा कैसे जुड़ गई ? इन सबका कहीं न तो स्पष्ट उल्लेख ही मिलता है और न ही कोई प्रत्यक्ष कारण ही दिखाई देता है ।

हम एक तरह से सहज अनुमान कर सकते हैं कि विवाहित जोड़े को एक नए जीवन में प्रवेश करना होता है, एक घर बसाना होता है, तो ऐसा करते समय उन्हें किसी भी तरह की आर्थिक असुविधा एवं सामाजिक दुविधा न रहे, इस कारण कन्यापक्ष या वरपक्ष और रिश्ते-नातों या बिरादरी वालों की तरफ से कुछ उपहार देने का प्रचलन हुआ होगा ।

इसी ने आगे चलकर दहेज का स्वरूप धारण कर लिया होगा । इस प्रकार सदाशय प्रकट करने वाली एक अच्छी प्रथा आज किस सीमा तक प्रदूषण और सामाजिक समस्या बन चुकी है, यह किसी से छिपा नहीं ।

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