Hindi, asked by Aryatyagi9201, 2 months ago

anuched on jab main apni pariksha me prathan aayi

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Answered by siddhipatil0
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Jab mei apni pariksha mei prathan aayi mujhe bohot acha laga.

Answered by ys675971
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सुबह से देर रात तक किताबें और मैं। ऐसे कई महीने बिताने के बाद परीक्षाएँ आरंभ हुई। हर दिन उत्सुकता और जिज्ञासा लिए आता था। मन में तरह-तरह के प्रश्न उठते रहते। न जाने मेरे इस कठोर परिश्रम का फल कैसा होगा

हर परीक्षा के अंत में मित्रों से लंबी-लंबी चर्चा होती। विभिन्न पुस्तकों में प्रश्नपत्र के उत्तर ढूँढ़े जाते। उत्तरपुस्तिका में लिखे गए उत्तरों की स्वयं ही जाँच की जाती। हर प्रश्न को अंकों के तराजू पर तौलकर अपना मूल्यांकन स्वयं किया जाता। हर समय ध्यान केवल प्रश्नपत्रों के हल से प्राप्त किए जानेवाले अंकों पर ही केंद्रित होता।

परीक्षाएँ समाप्त हो गई। दिनभर मनोरंजन व प्रतीक्षा में व्यतीत हो जाता। परंतु कोई रात ऐसी न गई जब मैं परीक्षा भवन में नहीं था। हर रात का स्वन कहीं न कहीं मेरी परीक्षाओं से ही संबंधित होता था। स्वप्न में लगता कि परीक्षा का आधा समय बीतने पर मैं सोकर उठा है, कभी स्वप्न आता कि में परीक्षा भवन में बैठा हूँ और लाख बार लिखने का प्रयल करने पर भी कलम से लिखा ही नहीं जा रहा। कभी स्वप्न आता कि प्रश्नपत्र का कोई भी सवाल मुझसे हल नहीं हो रहा

एक दिन अखबार में पढ़ा कि इस सप्ताह दसर्वी का परिणाम घोषित हो जाएगा। हर दिन उत्सुकता से भरा होता था। घंटों-घंटों मित्रों से बातचीत होती रहती। एक दिन रात के लगभग एक बजे का समय था कि दरवाजे की घंटी बजी। मेरे पिता जी ने दरवाजा खोला। कुछ समाचार पत्रों के संवाददाता बाहर खड़े थे। पता चला बोर्ड ने परिणाम घोषित कर दिया है और परिणाम सुबह के समाचार पत्र में आ जाएगा।

से बोर्ड की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था इसलिए संवाददाता मेरा साक्षात्कार लेना चाहते थे। समाचार सुनते ही पिता जी ने मुझे उठाया। पिता जी की हड़बड़ाहट देखकर मैं डर गया। पिता जी कुछ बोल न पाए। बस, मुझे अतिथि कक्ष में ले आए।

कुछ क्षण तो बात समझ में न आई कि यह सब क्या है। बाद में जब पता चला कि मैं बोर्ड में प्रथम आया हूँ तो मन खुशी से नाच उठा। वाह। मेरी मेहनत रंग लाई। वे सब रातें जो मैंने जागकर बिताई थीं, उनका फल मुझे मिल ही गया।

संवाददाताओं ने मेरा चित्र लिया। बिखरे बाल, ओठों पर हँसी, मैं अपना स्वाभाविक चित्र छपवाना चाहता था। मुझसे पूछा गया कि मैं कैसा अनुभव कर रहा हूँ? बस, बिना सोचे-समझे जो कुछ बोला, अगले दिन समाचार पत्र में छपा था। निश्चित रूप से मेरी सफलता का सारा श्रेय मेरे परिश्रम तथा मेरे अध्यापकों के उत्तम शिक्षण को जाता था। मेरी माता जी और पिता जी ने भी मेरे उत्साह और धैर्य में काफ़ी वृद्धि की थी।

सुबह से ही रिश्तेदारों और मित्रों के फ़ोन आने शुरू हो गए। सब मेरी सफलता पर बेहद प्रसन्न थे। माँ और पिता जी मुझे मंदिर ले गए। हमने । भगवान को प्रसाद चढ़ाया। फिर मैं विद्यालय गया। वहाँ मेरे मित्रों ने मेरा प्रसन्नता से स्वागत किया। मेरा मन भी बहुत प्रसन्न था। मैंने अपने अध्यापकों के चरण छुए। सबने प्रसन्नता से मुझे गले लगा लिया। मेरे प्रधानाध्यापक ने मेरा माथा चूम लिया। उनकी आँखों में खुशी के थे। मेरी आँखें भी भर आईं। वह क्षण याद आते ही तन-मन सिहर उस है। इतना भाव-विभोर मैं कभी भी नहीं हुआ था।

शाम के समय हमने घर पर एक पार्टी का आयोजन किया। पिता जी ने अपने मित्रों को भी बुलाया। हमारे सभी रिश्तेदार फूल व उपहार लिए उपस्थित थे। मेरे मित्रों को भी मेरी इस सफलता पर गर्व था। सभी समाचार पत्र में छपे मेरे चित्र को बार-बार देखते और कहते, "भई, गौरव! बेश हो तो तुम जैसा।" सबसे प्रशंसा सुनते-सुनते मैं खुशी से फूला न समाता था। मेरी माता जी के तो सुबह से ही पैर धरती पर नहीं पड़ रहे थे। लगता था, यह सफलता मेरी नहीं, माँ की सफलता है।

नाच-गाना, खाना-पीना ! वह शाम बहुत रंगीन और जोश, उमंग व उल्लास से पूर्ण थी। मेहनत अवश्य रंग लाती है - ऐसा बार-बार मझे लगने लगा था। तन-मन में अद्भुत स्फूर्ति का संचार हो गया था। मन बार-बार अभिलाषा कर रहा था कि सदा इसी सफलता के शिखर पर बैठा है। उत्थान का यह क्रम अनवरत मेरे जीवन में चलता रहे। मन में कविवर पंत की ये पंक्तियाँ गूंजने लगी-

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