English, asked by aarya446, 1 year ago

anuched on mitrataa​

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Answered by AnnikaSaraswat
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एक सच्चा मित्र वो होता है जो दुख और सुख में काम आता है एक ऐसा मित्र जो आपका साथ सिर्फ सुख में ही देता है वह सच्चा मित्र नहीं हो सकता है एक सच्चा दोस्त तो जीवन की कड़ी धूप में छीतल छाँव की तरह होता है एक अच्छा दोस्त बुरे हालातों में अपने मित्र का साथ नहीं छोड़ता और ऐसे हालातों में उसका मार्गदर्शन करता है।

एक सच्ची मित्रता तो दुनिया के हर प्रकार के छल कपट से सौ कोहां दूर ही होती है। मित्रता जीवन का सर्वश्रेष्ठ अनुभव माना जाता है जो एक ऐसे मोती के समान है जिसे गहरे समुन्द्र में डूबकर ही हासिल किया जा सकता है मित्रता की कीमत आप पैसों से नहीं चुका सकते और अमीर गरीब , छोटा बड़ा आदि जैसी बातों में मित्रता का कोई स्थान नहीं होता है।

एक सच्ची मित्रता तो भगवान की तरफ से दिया हुआ वरदान होता है यह इन्सान की सोयी हुई किस्मत को जगा देती है। मित्रता करनी तो बहुत आसान होती है किन्तु निभानी बहुत मुश्किल होती है आज दोस्ती का दुरूपयोग आम सी बात हो गयी है आज कल लोग अपना काम निकालने के लिए दोस्ती का सहारा लेते है जो मित्र अपना स्वार्थ निकालकर दूर भाग जाते हैं वह मित्रता जैसे प्यारे रिश्ते को कलंकित कर देते हैं। इसीलिए आज के समय में एक सच्चा मित्र ढूंढना कोई आसान काम नहीं है।

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Answered by Anonymous
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                             मित्रता        

मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना उसका जीवन नहीं चलता। समाज में रहते हुए उसे अपने सुख – दुःख को कहने – सुनने, भावनाओं का आदान – प्रदान  करने तथा अपने कार्यो को सम्पादित करते में दूसरों की सहायता की आवश्यकता पड़ती है। उसे ऐसे व्यक्ति की भी आवश्यकता पड़ती है जो उसके सुख – दुःख में उसका हाथ बटा सके, जिसे वह अपने मन की बात बिना किसी संकोच से कह सके, जो कठिनाइयों और बाधाओं में उसका साथ दे, जो सही समय पर उसे सही दिशा की और प्रवृत्ति कर सके तथा जिस पर वह पूरा विश्वास कर सके। ऐसे व्यक्ति ही ‘मित्र’ कहलाता है।

भर्तहरि ने मित्र के गुणों का वर्णन करते हुए कहा है कि एक अच्छा मित्र पाप से बचाता है, अच्छे कामों में लगता है, मित्र के दोषों को छिपाता है और उसके गुणों को प्रकट करता है, विपत्ति के समय साथ देता है और समय पड़ने में उसे सहायता भी करता है। पर ऐसा मित्र मिलना आसान नहीं। जिस व्यक्ति को भी ऐसा मित्र मिल गया मानो उसके जीवन में एक बहुत बड़ी निधि पाली। तुलसीदास ने भी कहा है –

” धीरज धर्म मित्र अरु नारी

अपाद काल परखिए चारी “

सच्चे मित्र की पहचान तो विपत्ति पड़ने पर ही होती है। सच्चा मित्र तो जीवन का सबसे बड़ा सहारा है। मित्र के चुनाव में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। इसलिए सुकरात ने मनुष्य को सलाह दी है – “मित्रता करने में शीघ्रता मत करो, पर करो तो अंत तक निभाओ।” केवल बहरी चमक – दमक, वाक पटुता, आर्थिक सम्पनता आदि देखकर ही किसी को मित्र बनाना उचित नहीं। सच्ची मित्रता का आधार मित्र का चरित्र तथा आचरण होता है जिसकी परख एकदम नहीं की जा सकती

इसलिए किसी को मित्र बनाए से पूर्व धैर्यपूर्वक निर्णय लेना चाहिए।

जीवन रुपी संग्राम में मित्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वेसे तो कृष्ण और सुदामा की, कर्ण और दुर्योधन की मित्रता के उदाहरण भी दिए जाते हैं। कृष्ण राजा थे तो सुदामा दीं ब्राह्मण। कर्ण महादानी तथा उत्तम चरित्रवान व्यक्ति थे तो दुर्योधन महाअहंकारी, ईर्ष्यालु, क्रोधी तथा जिद्दी। फिर भी मित्रता की कसौटी पर मित्रता के ये दोनों उदाहरण खरे उतरे। महाभारत के युद्ध से पूर्व श्री कृष्ण ने कर्ण से प्रस्ताव किया कि यदि वह दुर्योधन को त्याग पांडवों के पक्ष में आ जाए, तो उसे राज गद्दी पर बिठा दिया जायेगा तथा पांडव उसकी आज्ञा का पालन करेंगे। इस प्रस्ताव को सुनकर कर्ण ने जो उत्तर दिया, वह उसकी सच्ची मित्रता का परिचयक था उसने कहा –

‘मित्रता बड़ा अनमोल रत्न,

कब इसे तोल सकता है धन।

सुरपुर की तो है क्या बिसात,

मिल जाये अगर बैकुंठ हाथ।

कुरुपित के चरणों में धर दूँ,

जब मनुष्य पर मुसीबत के बदल जाते हैं, चारों ओर से निराश का अहंकार दृष्टिगोचर होता है तो केवल सच्चा मित्र ही सुके लिए आशा की किरण बनकर सामने आता है।

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