Hindi, asked by preetsandhu8, 1 year ago

anuched on naya savera nayi soch​

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Answered by yatin9790
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आप बाहर से कितने ही उपाय कर लें, सकारात्मक सोच की पचास किताबें पढ़ लें, सोचसोच कर पचासों वस्तुएं संगृहीत कर लें जो आप के लिए सुखदायक हैं, परंतु यदि आप की आंतरिक विचारणा अनर्गल, आत्मपीडि़त व निंदक है, आप ढुलमुल नीति के हैं, तब आप के जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आने वाला नहीं.

हमारे व्यवहार के गलत तरीके हमारे जीवन में तनाव लाते हैं, दुख से ही हमें अधिक परिचित कराते हैं. हम हर सुखात्मक स्थिति में भी तकलीफ ही तलाश करते हैं. क्या हो चुका है, यह हमें प्रीतिकर नहीं लगता, पर जो नहीं हुआ है उस पर हमारी दृष्टि लगी रहती है. हम स्वयं शांति चाहते हैं, हर काम में परफैक्शन तलाश करते हैं, तब हमारी निगाह हमेशा कमियां तलाश करने में चली जाती है और हम तो दुखी होते ही हैं, दूसरे के लिए भी दुखात्मक भावनाएं पैदा करते हैं. चाहे घर पर हों या कार्यालय में, हम कहीं भी खुश नहीं रह सकते, हम जीवन को दयनीय और दुखात्मक बनाते चले जाते हैं.

शेखर साहब बड़े अफसर रहे हैं. कार्यालय में आते ही वे पहले अपनी नाक पर उंगली रख कर सगुन देते. तब कुरसी पर बैठते. बजर बजाते, पीए अंदर आता तो सगुन देखते, सगुन चला तो अंदर आने देते, वरना वापस भेज देते. पूरा कार्यालय परेशान था. वे मेहनती व ईमानदार भी थे. पर न वे खुश रह पाते थे न किसी और को रहने दे सकते थे. एक बार उन के बड़े साहब आए. उन्हें यह पता था. वे अपने साथ नसवार से रंगा लिफाफा लाए थे. उन्हें दिया तो वे अचानक छींकने लग गए. शेखर साहब घबरा गए. सगुन जो बिगड़ गया था. बड़े साहब ने सम?ाया, सगुन की बात नहीं है, कागज में नसवार लगी है. छींक आएगी ही. सगुन को पालना बंद करो. तुम ने सब को दुखी कर रखा है.

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