anuched on pratha braman ke laabh
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शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषूर्मृदुवागनहंकृत: |
ब्राह्मणद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते || 9/335 ||
भावार्थ – शुद्ध-पवित्र, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, सदा ब्राह्मण आदि तीनों वर्णों की सेवा में संलग्न शूद्र भी उत्तम ब्रह्मजन्म* के अतंर्गत दूसरे वर्ण को प्राप्त कर लेता है.
ब्राह्मणद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते || 9/335 ||
भावार्थ – शुद्ध-पवित्र, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, सदा ब्राह्मण आदि तीनों वर्णों की सेवा में संलग्न शूद्र भी उत्तम ब्रह्मजन्म* के अतंर्गत दूसरे वर्ण को प्राप्त कर लेता है.
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