anushasan hinta Jeevan hinta par nibandh
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विद्या +अर्थी अर्थात विद्या के हेतु जिनका जन्म हुआ हो वो है विद्यार्थी I लेकिन नित्य बढती अनुशासनहीनता के कारण आजकल के विद्यार्थियों ने उसका अर्थ बदल दिया है I वो इस प्रकार है जो विद्या की अर्थी निकाल दे वही विद्यार्थी है I माता पिता गुरु या कोई भी श्रेष्ठ उनलोंगों के लिए विद्यार्थियों के प्रणाम करने का अंदाज़ बदल गया है Iएक हाथ से घुटने तक जाते हैं यही प्रणाम हो गया Iश्रेष्ठ जन उनके बढ़ते हुए हाथ को देखकर पहले ही खुश रहने का आशीर्वाद देते हैं Iशिक्षक का सम्मान इनके शब्द कोष में नहीं है Iशिक्षक अगर वर्ग में पढ़ा रहे होते हैं तो उद्दंड छात्र पीछे से उनकी नक़ल उतार रहे होते हैं I कभी उनकी चाल नक़ल कभी उनके बाल की नक़ल Iकभी उनके पीछे पीछे बच्चे चलने तक लगते हैं उनमें जो ज्ञान है उसे लेना नहीं चाहते I क्यूंकि वो प्यास ही नहीं है I शिक्षक के सामने कहीं रास्ते पर चौराहे पर वे तम्बाकू खाते हैं या पान मसाला गुठका आदि उसका एक मुख्य कारण ये भी है कि शिक्षक पढ़ा सकते हैं लेकिन किसी एक भी बच्चे को वे सजा नहीं दे सकते I इसके चलते अनुशासनहीनता और बढ़ रही है Iपहले कबीर ने लिखा था:
गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है ,गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट I
भीतर हाथ सहार दे ,बाहे मारे चोट II
गुरु का काम अन्दर से सहारा देना है और बाहर से हलके हाथों चोट भी लेकिन आज के समय में ऐसा हो नहीं पा रहा है I जब छात्र अनुशासनहीन हो जायेंगे तो आगे देश के व्यवस्था के लिए हम क्या सोचेंगे I
जहाँ शिक्षक निरीह हो जायेंगे वहां के छात्र अनुशासनहीन ज़रूर हो जायेंगे I
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