Any haryanvi poem
please its urgent
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मैं छात पे खड़ा था
वा भी मैं छात पे खड़ी थी
बस नुहे मेरी उसपे नजर पड़ी थी
मैं उस ओड़ मुह करके खड़ा था
वा इस ओड़ मुह करके खड़ी थी
पर दोनुआ के बीच में एक गड़बड़ी थी
मैं अपनी छात पे खड़ा था
वा अपनी छात पे खड़ी थी
ना उसने मैं दिखा,
ना मन्ने उसका मुह दिखा
क्युकी मैं भी रात ने खड़ा था
और वा भी रात ने खड़ी थी
मैं खड़ा खड़ा नु सोचु था
वा छात पे क्यूँ खड़ी थी
छात पे खड़ी थी तो खड़ी थी
पर छात पे रात ने क्यूँ खड़ी थी
मन्ने एक काकर उठाई,
उस की ओड़ बगाई
वा काकर भी जाके उसके धोरे पड़ी थी
वा चांदणे में आई तो
उसके मुह पे नजर पड़ी थी
ओह तेरी के होगी बड़ी गड़बड़ी थी
जिसने मैं नू सोचु था के वा खड़ी थी
वा तो उसकी माँ खड़ी थी
मैं छात पे ते भाग के निचे आया
गली में देखा तो ताऊ भरतु हांडता पाया
जब मेरी नजर ताऊ भरतु पे पड़ी थी
तो मेरे समझ में आया के गड़बड़ी थी
वा इतनी रात ने छात पे क्यूँ खड़ी थी
वा इतनी रात ने छात पे न्यू खड़ी थी