अपनी भूल को न पहचाननेका सरल मार्गहै, दूसरों को ही दोषी या अपराधी ठहरा देना। जब
हम अपनी भूल को स्वीकार करनेकी बजाय दूसरों को दोषी या अपराधी ठहरातेहैं, तो उन्हेंसज़ा
ददए दबना हमेंदबल्कु ल भी चैन नहीं आता, हालाँदक सज़ा देनेकेललए खास योग्यता होनी चादहए।
हर व्यदिदकसी को उसकेअपराध केललए उपयुिसज़ा नहीं देसकता। दुखी व्यदिमात्र बदला
लेसकता है, जबदक सज़ा देनेवालेको दववेकी व दयालुहोना चादहए तथा उसेदकसी व्यदि और
पररस्थथतत दवशेष सेबातधत नहीं होना चादहए। जब लोर् दुखी होतेहैंतो अक्सर सबक स्सखानेकी
बात करतेहैं। यह उनकी नफ़रत है, जो दूसरेरूप मेंप्रकट होती है। सं वेदनशील व्यदिको कोई सज़ा
नहीं देता क्योंदक सं वेदनशील व्यदि तो स्वयं ही अपनी भूल को पहचानकर उसका प्रायस्चचत कर
लेतेहैं। जो लोर् प्रायस्चचत कर लेतेहैं, उन्हेंदं ड नहीं ददया जाना चादहए। भूल होनेपर प्रायस्चचत
करनेकी मानव समाज मेंपुरानी परं परा है। प्रायस्चचत का अथगपछतावेकेरूप मेंनहीं ललया जाना
चादहए, स्जस अथगमेंउसेप्रायः ललया जाता है। प्रायस्चचत का वास्तदवक अथगहै- तचत्त को पुनः ताज़ा
व युवा कर देना। आत्मा के दवस्मरण सेजो तचत्त बूढा हो र्या था, उसेस्मृतत सेपुनः बनाना ही
प्रायस्चचत है। अपनेआपको सतानेवाला अल्पज्ञानी है। अपनी र्लती का ज्ञान ही उसके ललए
सज़ा केसमान हैं। दकसी को दं ड देकर प्रसन्न होनेवाला व्यदि रुग्ण तचत्त का होता है।
(क) उपयुगि र्द्यांश का उतचत शीषगक लललखए। (1)
(ख) ‘अल्पज्ञानी' का एक समानाथी शब्द लललखए। (1)
(र्) ‘अपराधी' और 'रुग्ण' का दवलोम शब्द लललखए।। (2)
(घ) ‘अपराध केललए सज़ा देनेवाला उपयुि अतधकारी हर व्यदि नहीं हो सकता'- क्यों? (2)
(ङ) सं वेदनशील व्यदि को दं ड क्यों नहीं देना चादहए ? (2)
(च) ‘प्रायस्चचत' सेक्या अतभप्राय है? स्पष्ट कीस्जए?
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bahut asha likha bahut asha hai
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