अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?
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'अपना घर' से तात्पर्य है- मोह ममता का संसार। व्यक्ति इस घर के आकर्षण-जाल में उलझकर रह जाता है और ईश्वर-प्राप्ति के लक्ष्य में पिछड़ जाता है। कवयित्री इस घर अर्थात मोह-ममता को भूलने की बात कर रही है ताकि वह निष्प्रह भाव से अपने आराध्य शिव की उपासना कर सके और उसे पा सके।
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अपना घर से यहां तात्पर्य व्यक्तिगत मोहमाया में लिप्त जीवन से है। व्यक्ति इस घर के आकर्षण जाल में उलझ कर ईश्वर प्राप्ति के लक्ष्य में पीछे रह जाता है। कवयित्री ऐसे मोहमाया में लिप्त जीवन को छोड़ने की बात करती है क्योंकि यदि ईश्वर को पाना है तो व्यक्ति को इस जीवन का त्याग करना होगा। ईश्वर भक्ति में सबसे बड़ी बाधा यही होती है। अपने घर को छोड़कर ही ईश्वर के घर में क़दम रखा जा सकता है और उसकी उपासना करके उसे पाया जा सकता है।
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