Hindi, asked by nikita689, 7 months ago

अपने जीवन में घटी उस घटना का वर्णन कीजिए, जिसे याद कर आप आज भी हँसे बिना नहीं रहते तथा इससे आपको क्या लाभ मिलता है ?

Answers

Answered by akulsharmadpsnt
9

Answer:

Explanation:

हास्य-विनोदपूर्ण घटना

समय और परिस्थितियों ने मानव-जीवन को नर्क बना दिया है। महत्वाकांक्षाओं ने उसे मशीन बनाकर उसके तन से रस या आनन्द की अनुभूति को सदैव के लिए तिरोहित कर दिया है। प्यार, करुणा और सहानुभूति की खोज में शून्य में ताकती आँखें, बुझे से चेहरे, कृशप्राय शरीर तथा जवानी में ही बुढ़ापे से प्रतिबिम्बित युवक! यह है आज के मानव का चित्र। इसी कुण्ठा, तनाव और निराशा से मुक्ति का एकमात्र साधन है, हास्य (हँसी)। यह एक ऐसा टॉनिक है जो रोगी को स्वस्थ तथा बुझे चेहरों पर प्रकाश और आत्म-विश्वास की रेखा पैदा कर सकता है। किसी कवि ने कहा है-“हँसो-हँसो भई हँसो, हँसते रहने से चेहरे पर आत्म-विश्वास की चमक और आँखों में नई आशा की किरण जन्म लेती हैं।”

मानव-जीवन सुख-दुःख, हानि-लाभ, यश-अपयश आदि से पूर्ण है। जन्म से मृत्यु तक संघर्षपूर्ण इस मानवजीवन में अनेक घटनाएं घटित होती रहती हैं। ये दुःखद और सुखद दोनों प्रकार की होती हैं। अधिकतर घटनाओं को मानव भूल जाता है, किन्तु कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिन्हें समय की आँधी और तूफान भी विस्मृत नहीं कर पाते। इस प्रकार दुःखद घटनाएँ यदि विषाद और निराशा की सृष्टि करती हैं, तो सुखद घटनाएँ मन को एक अद्भुत आह्लाद से भर देती हैं। ऐसी एक घटना का वर्णन मैं यहाँ कर रहा हूँ।

घटना आज से लगभग 20 वर्ष पुरानी है। मार्च का अन्तिम दिन था। विद्यालय का अवकाश था। मैं कुछ उदास स्थिति में घर में बैठा था। अचानक डाकिया मेरे नाम का एक पत्र द्वार पर लगी पत्र-पेटिका (Letter box) में डाल गया। उत्सुकतावश पत्र, पेटिका से बाहर निकालकर पढ़ा। दूसरे दिन जन्म-दिवस समारोह का निमन्त्रण था। आग्रह कुछ अधिक ही था और दूसरे दिन शाम का समय फालतू था। अतः कार्यक्रम बनाकर शाम के समय एक बड़ा-सा उपहार लेकर हम उनके घर पहुंचे। यहाँ सब कुछ सामान्य-सा ही दिखायी दिया। अब पहुँच तो गये ही थे। विचार किया कि जो होगा सो देखा जायेगा। उत्सुकता दबाये इन्तजार करने लगे। परिवार के सभी सदस्य अचानक मेरे आगमन से कुछ आश्चर्यचकित थे, क्योंकि अनेक बार आग्रह किये जाने पर भी मैं वहाँ नहीं जाता था।

औपचारिकता के बाद भी जब मुझे जन्म-दिवस मनाये जाने के कोई लक्षणे न दिखाई दिये तो मैंने पूछा कि आज (उस दिन) किसी (नाम लेकर) के जन्म-दिवस मनाये जाने की सूचना मिली थी। जिसके कोई लक्षण अथवा तैयारी नहीं है। तब जाकर बात खुली। उसी समय सम्बन्धी की पुत्री चाय के साथ मिठाई और नमकीन आदि लेकर आयी। मेरे आग्रह पर उस बालिका के पिताजी भी शामिल हो गये। मैंने ध्यान दिया कि वे कुछ अधिक कृत्रिम गम्भीरता का आवरण लगाकर आचरण कर रहे थे। उनकी माँ के लिए कहा गया कि वे किसी सहेली से मिलने गयी हैं। मुझे यह कुछ बनावटी तो मालूम हुआ किन्तु शान्त रहा।

चाय का पहले यूंट लेते ही मन कड़वाहट और कसैलेपन से भर गया। वे पिता-पुत्री मेरे चेहरे के भाव बड़े ध्यान से पढ़ रहे थे। कप रखकर मैंने बिस्कुट उठाया, किन्तु यह क्या ? वह पत्थर के समान कठोर। अब तक मैं भी सब कुछ समझकर नासमझ बनने का अभिनय कर रहा था। अन्त में मैने विदा माँगी। मैंने उपहार उस बालिका को भेंट किया और चलने वाला था कि बालिका की माताजी मुस्कराती हुई सामने आयीं। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि मुझे किस प्रकार मूर्ख बनाया गया है, तो वे बच्चों तथा उनके पापा पर बिगड़ीं। तभी उपहार का पैकिट खोलने पर उसमें असीमित तहों के बाद पुर्जा था। ऐप्रिल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया। अब पासा पलट गया। मुझे मूर्ख बनाने वाले स्वयं मूर्ख बन गये। बाद में अच्छे नाश्ते और गप्पों के बाद वापस लौटा। मैं यह घटना आज भी नहीं भुला पाता हूँ।

Similar questions