अपनी जमीन अौर जंगलो से बिछड़ने के बाद आदिवासी समुदाय किस प्रकार से प्रभावित थे
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अपने बारे में खुद निर्णय लेने, अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को सुरक्षित एवं विकसित करने तथा जीवन व संपत्ति को शाँतिपूर्ण तरीके से रख सकने के अधिकार, दुनिया भर में स्वीकृत अधिकार हैं तथा इनको सभी मान्यता देते हैं। किताबों में ये अधिकार हमारे देश में भी लिखे हुए हैं। लेकिन धरातल पर सच्चाई इसके विपरीत है। दक्षिणी राजस्थान की जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा इन अधिकारों से न केवल वंचित है वरन उसकी कल्पना करवाना भी उसके लिये दूर की बात है।
भारतीय उप महाद्वीप के आदिवासी समुदायों ने अपने अस्तित्व में आने के बाद अपनी जमीन, संसाधनों व संस्कृति पर पहली बार अंग्रेजों के जमाने में योजनाबद्ध प्रहार झेले। जिसे वे अपनी जमीन मानते थे, उनसे छीनी गई। उनके अधिकारों को रियायतों में बदल दिया गया। उनसे कहा गया कि उसकी न भाषा है, न संस्कृति है और न इतिहास। वे असभ्य जंगली हैं। उन्हें सभ्य बनाकर, कपड़े पहनाकर शिक्षित करके तबाही से बचाया जायेगा। आदिवासियों के बारे में यही नीति आजादी के बाद भी कायम रही तथा लगातार एक व्यवस्थित मुहिम चलाकर उन्हें उखाड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं।