अपनी किसी रोचक यात्रा का वर्णन अस्सी से सौ शब्दों में करिए ।
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मानव जीवन में प्रत्येक तरह की यात्रा का अपना विशेष रोमांच व महत्व होता हैं. चाहे वह यात्रा रेल हो या बस द्वारा या अन्य किसी साधन द्वारा. यात्रा का नाम सुनते ही मन बाग़ बाग़ हो उठता हैं. यदि यात्रा ऐतिहासिक स्थलों व तीर्थ स्थलों से संबंधित हो तो उनको देखने की उत्कृष्ट इच्छा मन में सहज रूप से जागृत हो जाती है और यात्रा का महत्व स्वतः ही बढ़ जाता हैं. कई दिनों से हमारा मन भी दर्शनीय स्थलों की यात्रा करने की तलाश में था जिससे इन्हें देख सकू.
यात्रा का कार्यक्रम तथा तैयारी– मैं भरतपुर में एक सरकारी स्कूल में विद्याअध्ययन करता हूँ. अध्ययन के दौरांन एक दिन प्रसंग चल पड़ा कि दसवीं कक्षा के छात्रों को राजस्थान के ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा करवाई जाए. इच्छानुकुल समाचार सुनकर मन अत्यधिक खिल गया. प्रधानाध्यापकजी ने सभी छात्रों के लिए विद्यालय की बस का प्रबध कर दिया. निश्चित समय व तिथि पर आवश्यक सामान लेकर बस में सवार हुए तथा यात्रा पर चल दिए.
यात्रा के लिए प्रस्थान– हमारी बस भरतपुर से रवाना हुई. यात्रा का कार्यक्रम हमारे साथ था. सर्वप्रथम हमने जयपुर जाने का कार्यक्रम बनाया. मार्ग में हंसी मजाक में मनोविनोद करते हुए हंसते हंसते हम जयपुर आ गये. जयपुर में हमने नाहरगढ़ आमेर के महल, अजायबघर, जंतर मन्तर, हवामहल आदि कई दर्शनीय स्थल देखे. यहाँ से हमारी बस रणथम्भौर के लिए रवाना हो गई. जयपुर से हमारी बस दौसा और लालसोट होती हुई सवाईमाधोपुर पहुंची.
यात्रा का अनुभव– सवाईमाधोपुर से आगे रणथम्भौर का मार्ग पहाड़ी हैं. पहाड़ को काटकर सड़क बनाई गई हैं. रास्ते में स्थान स्थान पर सुंदर झरने अतीव आकर्षक लगते हैं. हमारी बस चली जा रही थी. बस जब रणथम्भौर के निचले पहाड़ी भाग में पहुची तो वहां एक तंग मोड़ था. रास्ता केवल इतना ही था कि गाड़ी पार हो सकती थी. एक तरफ पहाड़ था, दूसरी ओर गहरा नाला था, जिसकी सतह को देखने के लिए शायद दूरदर्शक यंत्र की सहायता लेनी पड़े. गाड़ी चली कि अचानक तंग मोड़ पर एकदम रूक गई. चालक ने अपने कला कौशल का बहुत कुछ प्रयोग किया, परन्तु वह एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकी.
यात्रा की रोचकता– दो घंटे हो गये, कोई उपाय नहीं सूझ रहा था, तभी दूसरी ओर से एक व्यक्ति पैदल आ रहा था. ड्राईवर ने उससे कहा कि भाई बस खराब है, तुम्हे नीचे पहियों में कुछ दिखाई दे रहा हैं. उस व्यक्ति ने झुककर नीचे देखा कि दो पहियों के मध्य में एक बेडौल पत्थर आड़ा फंसा हुआ हैं. यही कारण था कि पहिया जकड़ गया और हिल न सका. उस व्यक्ति ने हमारी बस के पहिये का पत्थर निकाला. ड्राइवर ने पुनः अपनी जगह मोटर रवाना की. अबकी बार झटके के साथ मोटर आगे बढ़ी और धीरे धीरे गति लेती हुई किले के नीचे तक पहुची.
उपसंहार- इस प्रकार हम रणथम्भौर पहुंचे. किला देखा. वहां चित्तौड गये. फिर चित्तौड़ से वापस हम भरतपुर के लिए रवाना हो गये ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा की तो महत्वपूर्ण रही परन्तु यात्रा के मध्य मोटरखराब होने की घटना वास्तव मेंअविस्मरणीय थी.अन्तः हम सब इस रोचक यात्रा से सकुशल अपने घरों को लौटने पर ईश्वर को धन्यवाद देने लगे.
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