अपने.मित्र को पत्र लिखे जिसमें गरीबी एक शाप है वरणन करे।
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हम करीब-करीब पिछले 40-50 साल से गरीबी हटाओ, इस बात को सुनते आए हैं। हमारे देश में चुनावों में भी गरीबों का कल्याण करने वाले भाषण लगातार सुनने को मिलते हैं। हमारे यहां राजनीति करते समय कुछ भी करते हो लेकिन सुबह-शाम गरीबों की माला जपते रहना, ये एक परंपरा बन गई है। इस परंपरा से जरा बाहर आने की जरूरत है और बाहर आने का मतलब है कि क्या हम प्रत्यक्ष रूप से गरीबों को साथ ले करके, गरीबी से मुक्ति का अभियान चला सकते हैं क्या? अब तक जितने प्रयोग हुए हैं, उन प्रयोगों से जितनी मात्रा में परिणाम चाहिए था, वो देश को मिला नहीं है। गरीब की जिन्दगी में भी जिस तेजी से बदलाव आना चाहिए, वो बदलाव हम ला नहीं पाए हैं। मैं किसी सरकार को दोष देना नहीं चाहता हूं, किसी दल को दोष देना नहीं चाहता हूं, लेकिन कुछ अच्छा करने की दिशा में एक नए सिरे से गरीबों के कल्याण के लिए मूलभूत बातों पर focus करना। वो कौन सी चीजें करें ताकि गरीब जो सचमुच में मेहनत करने को तैयार है, गरीबी की जिन्दगी से बाहर निकलने को तैयार है। आप किसी भी गरीब को पूछ लीजिए, उसे पूछिए कि भाई क्या आप अपने संतानों को ऐसी ही गरीबी वाली जिन्दगी जीएं, ऐसा चाहते हो कि अच्छी जिन्दगी जीएं चाहते हो। गरीब से गरीब व्यक्ति भी ये कहेगा कि मैं मेरे संतानों को विरासत मैं ऐसी गरीबी देना नहीं चाहता। मैं उसे एक ऐसी जिन्दगी देना चाहता हूं कि जिसके कारण वो अपने कदमों पर खड़ा रहे, सम्मान से जीना शुरू करें और अपनी जिन्दगी गौरवपूर्व बताएं, ऐसा हर गरीब मां-बाप की इच्छा होती हैं। उसको वो पूरा कैसे करें। आज कभी हालत ऐसी होती है कि वो मजदूरी करता है, लेकिन अगर थोड़ा-सा skill development कर दिया जाए, उसको थोड़ा हुनर सिखा दिया जाए तो पहले अगर वो सौ रुपया कमाता है, थोड़ा हुनर सिखा दिया तो वो 250-300 रुपए कमाना शुरू कर देता है और एक बार हुनर सीखता है तो खुद भी दिमाग लगाकर के उसमें अच्छाई करने का प्रयास करता है और इसलिए भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा अभियान चलाया है skill development का, कौशल्यवर्धन का। गरीब से गरीब का बच्चा चाहे स्कूल के दरवाजे तक पहुंचा हो या न पहुंचा हो, या पांचवीं, सातवीं, दसवीं, बारहवीं पढ़कर के छोड़ दी हो, रोजी-रोटी तलाशता हो। अगर उसे कोई चीज सिखा ली जाए तो वो देश की अर्थनीति को भी बल देता है, आर्थिक गतिविधि को भी बल देता है और स्वयं अपने जीवन में कुछ कर-गुजरने की इच्छा रखता है और इसलिए छोटी-छोटी चीजें ये कैसे develop करे उस दिशा में हमारा प्रयास है।
आज मैं यहां ये सब ई-रिक्शा वाले भाइयों से मिला। मैंने उनको पूछा क्या करोगे, चला पाओगे क्या? तो उन्होंने कहा साहब पहले से मेरा confidence level ज्यादा है। मैंने कहा क्यों? वो मेरा skill development हो गया। उसे skill शब्द भी आता था। बोले मेरा skill development हो गया। बोले मेरी training हुई और मेरा पहले से ज्यादा विश्वास है। पहले मैं pedal वाले रिक्शा चलाता था। मैंने कहा speed कितनी रखोगे? बोले साहब मैं कानून का पालन करूंगा और मैं कभी ऐसा न करूं ताकि मेरे परिवार को भी कोई संकट आए और मेरे passenger के परिवार को भी संकट आए, ऐसा मैं कभी होने नहीं दूंगा और काशी की गलियां तो छोटी है तो वैसे भी मुझे संभाल के चलना है। उसकी ये training हुई है। काशी में दुनिया भर के लोग आते हैं। काशी का tourism कैसा हो, काशी कैसा है, काशी के लोग कैसे है? उसका पहला परिचय यात्री को किसके साथ होता है, रिक्शा वाले के साथ होता है। वो उसके साथ किस प्रकार से व्यवहार करता है, वो उसके प्रति किस प्रकार का भाव रखता है, उसी से उसकी मन में छवि बनती है। अरे भाई, ये तो शहर बहुत अच्छा है। यहां के रिक्शा वाले भी इतने प्यार से हमारी चिन्ता करते हैं, वहीं से शुरू होता है और इसलिए यहां जो टूरिस्टों के लिए एक स्पेशल रिक्शा का जो सुशोभन किया गया है, कुछ व्यवस्थाएं विकसित की गई हैं। मैं उनसे पूछ रहा था, मैंने कहा आप Guide के नाते मुझे सब चीजें बता सकते हों, बोले हां बता सकता हूं। मैं हर चीज बता सकता हूं रिक्शा चलाते-चलाते और बोले मुझे विश्वास है कि मेरे रिक्शा में जो बैठेगा, उसको ये संतोष होगा कि काशी उसको देखने को सहज मिल जाएगा। चीजें छोटी-छोटी होती हैं, लेकिन वे बहुत बड़ा बदलाव लाती है।
आज चाहे pedal रिक्शा को आधुनिक कैसे किया जाए, pedal रिक्शा से ई-रिक्शा की ओर shifting कैसे किया जाए, यात्रियों की सुविधाओं को कैसे स्थान दिया जाए, बदलते हुए युग में environment friendly technology का कैसे उपयोग किया जाए? इन सारी बातों का इसके अंदर जोड़ हैं और सबसे बड़ी बात है उनके परिवार की। आज इसमें जो लोग select किए गए हैं, वो वो लोग है, जिनकी खुद की कभी रिक्शा नहीं
आज मैं यहां ये सब ई-रिक्शा वाले भाइयों से मिला। मैंने उनको पूछा क्या करोगे, चला पाओगे क्या? तो उन्होंने कहा साहब पहले से मेरा confidence level ज्यादा है। मैंने कहा क्यों? वो मेरा skill development हो गया। उसे skill शब्द भी आता था। बोले मेरा skill development हो गया। बोले मेरी training हुई और मेरा पहले से ज्यादा विश्वास है। पहले मैं pedal वाले रिक्शा चलाता था। मैंने कहा speed कितनी रखोगे? बोले साहब मैं कानून का पालन करूंगा और मैं कभी ऐसा न करूं ताकि मेरे परिवार को भी कोई संकट आए और मेरे passenger के परिवार को भी संकट आए, ऐसा मैं कभी होने नहीं दूंगा और काशी की गलियां तो छोटी है तो वैसे भी मुझे संभाल के चलना है। उसकी ये training हुई है। काशी में दुनिया भर के लोग आते हैं। काशी का tourism कैसा हो, काशी कैसा है, काशी के लोग कैसे है? उसका पहला परिचय यात्री को किसके साथ होता है, रिक्शा वाले के साथ होता है। वो उसके साथ किस प्रकार से व्यवहार करता है, वो उसके प्रति किस प्रकार का भाव रखता है, उसी से उसकी मन में छवि बनती है। अरे भाई, ये तो शहर बहुत अच्छा है। यहां के रिक्शा वाले भी इतने प्यार से हमारी चिन्ता करते हैं, वहीं से शुरू होता है और इसलिए यहां जो टूरिस्टों के लिए एक स्पेशल रिक्शा का जो सुशोभन किया गया है, कुछ व्यवस्थाएं विकसित की गई हैं। मैं उनसे पूछ रहा था, मैंने कहा आप Guide के नाते मुझे सब चीजें बता सकते हों, बोले हां बता सकता हूं। मैं हर चीज बता सकता हूं रिक्शा चलाते-चलाते और बोले मुझे विश्वास है कि मेरे रिक्शा में जो बैठेगा, उसको ये संतोष होगा कि काशी उसको देखने को सहज मिल जाएगा। चीजें छोटी-छोटी होती हैं, लेकिन वे बहुत बड़ा बदलाव लाती है।
आज चाहे pedal रिक्शा को आधुनिक कैसे किया जाए, pedal रिक्शा से ई-रिक्शा की ओर shifting कैसे किया जाए, यात्रियों की सुविधाओं को कैसे स्थान दिया जाए, बदलते हुए युग में environment friendly technology का कैसे उपयोग किया जाए? इन सारी बातों का इसके अंदर जोड़ हैं और सबसे बड़ी बात है उनके परिवार की। आज इसमें जो लोग select किए गए हैं, वो वो लोग है, जिनकी खुद की कभी रिक्शा नहीं
Singhalayush:
plz mark it brainliest
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