English, asked by nupoor516, 11 months ago

अपना विकास सब का विकास इस विचारधारा को अपने शब्द में स्पष्ट करे।​

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Answered by khusbujanchal
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Answer:

सबका साथ-सबका विकास! चाहे वह गैर तार्किक व्यक्ति हो या अपनी भाषा, अपने पंथ, अपनी राजनीतिक विचारधारा, और अपने राष्ट्र से निरपेक्ष ही क्यों न हो, इस महान विचार से शायद ही उसे आपत्ति हो सकती है। यह राष्ट्रीय सीमाओं का अतिक्रमण करने वाली एक सार्वभौमिक अपील है। इसकी सच्चाई कालातीत है, इसका इस्तेमाल कहीं भी, किसी भी समय, किसी भी शासक द्वारा किया जा सकता है, सम्राट अशोक से लेकर अकबर तक और जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक।यह सबको इतना प्रिय है कि इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपने प्रमुख लक्ष्यों में से एक के रूप में अपनाया जा सकता है! इस दृष्टिकोण के प्रति ईमानदार और गंभीर प्रयास के बिना संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना असंभव है। इसके अंतर्निहित मानवतावादी संदेश, प्रेरणादायक उद्देश्य और अपने आंतरिक मूल्यों में यह वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा की तरह उदार है! शब्दों और भावनाओं में अगर इसका अनुपालन किया गया, तो यह भारत को बदल सकता है। यह भारत के संविधान की प्रस्तावना के दर्शन को समाहित करता है। यह अच्छे शासन के लिए मार्गदर्शक का काम कर सकता है और दबावपूर्ण घरेलू मुद्दों का निपटारा कर सकता है। अगर समझदारी, व्यावहारिकता और संवेदनशीलता के साथ इसका अनुपालन किया जाता है, तो यह बाह्य रिश्तों, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के संचालन में भी प्रभावी और उत्पादक हो सकता है। टीवी बहसों और सार्वजनिक रैलियों में भले ही जीतने के लिए यह अच्छा तर्क हो, पर ऐसा लगता है कि इस सरल मंत्र को लागू करना मुश्किल है।

समावेशन इस अवधारणा की पूर्व शर्त है। इसका तात्पर्य किसी भी रूप में किसी तरह का भेदभाव न करने से है। इसमें राज्य समानता, गैर-भेदभाव और समावेशन का गारंटर बन जाता है। जब धर्म के कारण किसी को भी पीछे नहीं छोड़ा जाएगा या उसे वंचित नहीं किया जाएगा, तो राज्य के सामने धर्मनिरपेक्ष होने के सिवा कोई विकल्प ही नहीं है, जिसमें सभी धर्मों के अनुयायियों को अपने-अपने धर्म का पालन करने की अनुमति हो, और किसी को भी दूसरे को भयभीत करने और दूसरों पर अपने धर्म की श्रेष्ठता का दावा करने की अनुमति न हो। इसका मतलब यह भी है कि लोग अपने विश्वास, रिवाज, भोजन की आदतों, पोशाक और अपनी रचनात्मकता की कई सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों के साथ बिना किसी विशेष कठिनाई के अपना जीवन जीने में सक्षम हैं।

सबका विकास का मतलब है कि मौजूदा सरकार को न केवल विकास और प्रगति के प्रयास में भेदभाव नहीं करना है, बल्कि सबके विकास के लिए सक्रिय रूप से प्रयास करना है। सबका विकास सुनिश्चित करने के लिए सरकार को उन लोगों की विशेष जरूरतें पूरी करने के लिए योजनाएं शुरू करनी चाहिए, जो सदियों से वंचित हैं। भारत जैसे देश में, जहां लोग विकास के विभिन्न स्तरों पर हैं, सकारात्मक कार्रवाई राष्ट्रीय विकास एजेंडे के रूप में अपरिहार्य हो जाती है, न कि चुनावी गणना और विचारों के हिसाब से। इस तरह के उपायों की प्रभावकारिता तय करने और समाज के लक्षित वर्गों की स्थितियों में अपेक्षित सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए समय-समय पर मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।

'चलें साथ-साथ' सहिष्णुता, समझ और परस्पर प्रशंसा के उच्च मानकों को मानता है। इसका तात्पर्य यह भी है कि आप दूसरों की पीड़ा के प्रति संवेदनशील हैं और एक-दूसरे की देखभाल करने और साझा चलने में विश्वास रखते हैं। गांधी जी का प्रिय भजन-वैष्णव जन ते तेने कहिए, पीर पराई जाने रे...बड़े पैमाने पर सरकार और समाज की सामाजिक जिम्मेदारी बताता है। अफसोस, भारत में ज्यादातर मामलों में देखभाल और साझे की भावना कार्यों के बजाय केवल शब्दों तक सीमित है।

नरेंद्र मोदी बड़ा सोचते हैं, बड़ा काम करते हैं और भारत के लिए एक भव्य दृष्टि पेश करते हैं। उन्होंने आजादी के बाद से किसी भी प्रधानमंत्री की तुलना में ज्यादा नीतियों और योजनाओं की घोषणा की है, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं। मोदी इस भावना को बनाए रखना चाहते हैं कि वह भारत को बदलने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो पहले कभी नहीं हुआ। हलवे का स्वाद खाने में है और नीतियों का परीक्षण कार्यान्वयन में। उन्होंने जो भी वायदे किए हैं, उनका अगर 65 फीसदी भी लागू हो जाता है, तो वांछित परिणाम प्राप्त होंगे, और वह भारत के इतिहास में सबसे परिवर्तनकारी प्रधानमंत्री साबित होंगे। अगर ऐसा नहीं होता है, तो उन पर सपनों के सौदागर होने का आरोप लगेगा, जिन्होंने आकर्षक सपने तो दिखाए, पर वे ज्यादातर सपने ही रह गए। बड़े वायदे, सम्मोहक वक्तृत्व कला में निपुणता अगर ठोस परिणाम नहीं दे सके, तो शायद ही कभी दीर्घकालिक परिणाम दे सके।

भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और अगले तीन दशकों में तीसरे स्थान पर आ जाएगा। पांच हजार वर्ष पुरानी संस्कृति, विविधता, अविश्वसनीय दार्शनिक गहराई, प्रतिभा की खान, नए विचारों को अपनाने की क्षमता और नई प्रौद्योगिकी में महारत के साथ आज भारत को चर्चा, बहस, असंतोष की अभिव्यक्ति, यहां तक कि विरोधाभासी विचारों को प्रोत्साहित करने में आत्मविश्वास महसूस करना चाहिए। यही नहीं, तर्कशील भारतीयों के साथ व्यापक राष्ट्रहित में एक बेहतर नीति-निर्णय तक पहुंचने के लिए उसे ज्ञान और परिपक्वता का परिचय देना चाहिए। भारत की भावी प्रगति के लिए सामाजिक एकजुटता, सद्भाव, समावेशन और परस्पर देखभाल और साझा करने की भावना बेहद जरूरी है। किसी भी व्यक्ति, समूह या विचारधारा को किसी दूसरे के बारे में सही-गलत का फैसला करने या कानून हाथ में लेने, दूसरों को डराने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। लाखों लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाया जा चुका है, लेकिन अब भी लाखों लोग अत्यंत गरीबी में जीते हैं। गरीबों के आंसू पोंछने का गांधी जी का सपना अब भी सपना ही है। पराई पीर जानने वाले लोग कहां हैं?

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I hope I can help you my friend ☺️☺️

Answered by Mansipatel07
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Above is your answer

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