Hindi, asked by akshaarush2019, 10 months ago

Apne kisi yatra ka varnan yatra vritant vidha par adharit likhiye in Hindi please tell

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Answered by tarunthegamer007
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यात्रा का वर्णन– रात को गाड़ी दो बजे जालन्धर से चल पड़ी। कुछ समय तक हम सभी लोग आपस में बातें करते रहे लेकिन धीरे-धीरे छात्रों को नींद आने लगी और हम सभी सो गए। सुबह सात बजे के लगभग हम जम्मू तवी में पहुंचे। उस दिन के लिए सभी ने यह निश्चय किया कि जम्मू में रुकें और घूमें। अत: हम सभी रघुनाथ मन्दिर के पास की एक सराय में रुके जिसमें सभी प्रकार की व्यवस्था थी। यहां पर पहुंच कर सभी शौचादि क्रिया से निवृत हो कर स्नान कर तैयार हुए और रघुनाध मन्दिर में दर्शन के लिए चल पड़े। इस मन्दिर में बहुत ही भव्य मूर्तियां रखी हैं तथा कहते हैं कि वहां 84 लाख के लगभग देवताओं के प्रतीक बनाए हुए हैं। रघुनाथ मन्दिर में बहुत भीड़ थी। अनेक शहरों से लोग यहां आए थे। कुछ लोग वैष्णो देवी की यात्रा करके वापिस आ गए थे और कुछ लोग हमारी ही भांति यात्रा करने के लिए जाने वाले थे। रघुनाथ मंदिर के बाद हम जम्मू के बाजार में घूमने के लिए निकल पड़े। यहां हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि बाजार में कहीं चढ़ाई है कहीं ढलान। ऊपर चढ़ते और नीचे उतरते हम बाजार में घूमते रहे और इस प्रकार यह दिन हमने जम्मू में बिताया। दूसरे दिन हम सुबह के समय बस के द्वारा कटरे के लिए तैयार हो गए। जम्मू से कटरा जाने वाले यात्रियों की बहुत अधिक भीड़ थी। हमें एक घण्टे तक बस स्टैंड पर खड़े होने के बाद बस मिली। यह बस शहरों में चलने वाली बस की अपेक्षा छोटी थी। जैसे ही बस आगे बढ़ी सभी ने माता का जय घोष किया। कुछ ही समय पश्चात् बस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार मार्ग पर चलने लगी। बस में बैठे हुए भी हम दूर-दूर फैली पर्वत श्रेणियों को देख रहे थे। कभी-कभी कोई भक्त माता की जयकार करता और फिर सभी लोग उसके साथ बोल पड़ते। कटरा से यात्रियों से भरी हुए अनेक बसें वापिस आ रही थीं। ठण्डी । हवा के झोंके हमें प्रसन्न कर रहे थे। इस प्रकार पहाड़ी मार्ग के द्वारा यात्रा करते हुए हम 10 बजे दिन में कटरा पहुंचे। कटरा में यात्रियों की बहुत अधिक भीड़ थी। यहां हमने पहले एक धर्मशाला में पड़ाव डाल दिया। हम सभी लोग एक ही जगह ठहर गए। कुछ समय बाद हममें से कुछ लोगों ने वैष्णो देवी के मंदिर में जाने के लिए जो टिकट कटरा में मिल रहे थे वे टिकट प्राप्त किए। हमारे अध्यापक भी टिकट प्राप्त करने गए थे। लगभग सात बजे सायं को हमने वैष्णो देवी के लिए पैदल मार्ग की यात्रा आरम्भ की। कटरा से थोड़ी दूर पर आगे बाण गंगा है, हमने उसमें उतर कर स्नान किया। वैष्णो देवी की कथा से यह नदी जुड़ी हुई है। यहां पर टिकट पर एक विशेष नम्बर लगया गया। हमने आगे बढ़ने का निश्चय किया। यहीं से वैष्णो देवी की यात्रा के लिए दो मार्ग हो जाते हैं। एक मार्ग सीढ़ियों वाला है तथा दूसरा घुमावदार पगडंडी का मार्ग है। हम सभी युवा थे अतः हमने निश्चय किया कि कभी सीढ़ियों से चलें और कभी पगडंडी से। इससे हम दोनों मार्गों का और यात्रा का आनन्द ले सकेंगे। दोनों रास्तों पर आने-जाने वाले लोगों की भीड़ थी। लोग आते-जाते अथ माता’ कहकर ही एक-दूसरे का स्वागत करते थे। जाने और आने वाले लोगों में कुछ | बहुत ही वृद्ध भी होते थे और घोड़ों पर चढ़ कर आ-जा रहे थे। यात्रियों में दक्षिण भारत के भी बहुत-से लोग हमसे मिले। इस यात्रा में अनेक धर्म और जाति के लोग चल रहे थे। इस मार्ग पर यात्रा कठिन होती है पर सभी साथी आराम से थोड़ी दूर पर बैठकर चलते थे। कटरा के बाद फिर थोड़ी दूर पर धार्मिक स्थान चरण पादुका मिलता है। यहां पर दर्शन कर हम आगे बढ़े। फिर धीरे-धीरे चलते-बढ़ते हम आदि कुंवारी में पहुंचे। रात्रि के समय यहां चढ़ना बहुत ही सुखद और मनोहारी लगता है। बिजली का प्रकाश यद्यपि बहुत तेज नहीं होता तथापि मार्ग-दर्शन के लिए यह सहायता कर देता है। ‘आदि कुंवारी’ में बहुत बड़ी संख्या में लोग ठहरे हुए थे। यहां पर एक गुफा के मार्ग में निकलना होता है। जिसे गर्भयोनि कहते हैं। यह मार्ग बहुत ही तंग है तथा जब गुफा में प्रवेश करते हैं तो मन एक अजीब भय और कौतूहल से भर जाता है। पेट के बल लेट कर फिर इससे आगे निकलना पड़ता है। यहाँ भी माता की जयकार करते हुए लोग आगे बढ़ते हैं। हम यहाँ पर लगभग दस बजे पहुंचे तथा एक घण्टा यहीं पर रुके। अनेक यात्री रात्रि को यहीं विश्राम करते हैं तथा सुबह के समय अपनी यात्रा आरम्भ करते हैं। पर हमने निश्चय किया कि हम लोग अपनी यात्रा रात को जारी रखेंगे। अतः यहां पर हमने रात्रि का भोजन किया। यह बात उल्लेखनीय है। कि यहाँ पर व्यापारी यात्रियों के साथ अभद व्यवहार करते हैं और उनको मनमानी कीमतों पर चीजें, भोजन देकर लूटते हैं। सरकार की ओर से इन पर कोई नियन्त्रण नहीं होता है। ‘आदि कुंवारी’ पर लगभग आधी यात्रा हो जाती है। रात्रि में यहाँ से कटड़ा की ओर देखने पर अत्यन्त मोहक प्रकाश नज़र आता है। इस मार्ग पर बढ़ते हुए हमें अत्यन्त आनन्द आ रहा था। क्योंकि यह मार्ग चीड़ और देवदार के जंगल के बीच से होकर गुज़रता है, अतः यहाँ की यात्रा अत्यन्त रोमांचकारी थी। रात में ठण्डी-ठण्डी हवा बह रही थी तथा आकाश में बिखरे तारे और चाँद का प्रकाश दृश्य को रमणीय बनाता था। हम सभी लोग आपस में चुटकुले आदि सुनाते, माता का जयघोष करते आगे बढ़ रहे थे। हमारे अध्यापक साहब ने हमें माता के भजन भी सुनाए। चढ़ाई चढ़ते हुए कठिनाई और थकान तो अवश्य होती है परन्तु आनन्द भी बहुत मिलता है। यह मार्ग सारी रात यात्रियों से भरा रहता है तथा पूरी रात-दिन लोग चलते रहते हैं। यात्रियों को लूटने का कोई भय नहीं होता है। लोग निडर होकर यात्रा करते हैं। अर्द्धक्वारी के बाद ‘हाथी मत्था’ नामक स्थान आता है। इस स्थान पर बैठकर हमने विश्राम किया।

 

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